गांव की जड़ी-बूटियों पर टूटी आफत
जागरण संवाददाता मऊ बागवानी के शौकीनों के लिए जड़ी-बूटियों का संरक्षण अब भारी पड़ने ल
जागरण संवाददाता, मऊ : बागवानी के शौकीनों के लिए जड़ी-बूटियों का संरक्षण अब भारी पड़ने लगा है। गिलोय और मीठी नीम के पत्तों की मांग इतनी बढ़ गई है कि इसका संरक्षण करने वालों को अब जड़ खोदकर देने की नौबत आ गई है। गांवों के बगीचों में अपने आप उगने वाली गिलोय की लताओं का हाल यह है कि कई-गई बगीचों से तो यह साफ हो गई है। कोविड-19 के संक्रमण के शुरू होने और गिलोय के काढ़े के सुर्खियों में आने के बाद जिले में अब ऐसा शायद ही कोई परिवार हो जिसके दिनचर्या की शुरुआत काढ़े से न हो रही हो। काढ़ा भी अलग-अलग तरह का है। किसी के पास अलीगढ़ वाला काढ़ा तो किसी के पास रामदेव बाबा वाला है। कोई तुलसी, अदरक, तेजपत्ता, गुड़ वाले परंपरागत फार्मूले पर चल रहा है। किसी के घर पता चल जाए कि मीठी नीम है तो मांगते-मांगते गांव वाले उसकी जड़ तक खोदने पर आमादा हो जा रहे हैं। यही हाल नीबू और गरम पानी का है। पता चल जा रहा है कि फला के घर नीबू के पौधे में फल आ गए हैं तो मांगने वालों की कतारें लग जा रही हैं। बागवानी करने वाले परेशान हो जा रहे हैं कि किसे दें और किसे न दें, सवाल इंसानियत का है। इस तरह धीरे-धीरे आक्सीजन के सिलेंडर की तरह गांव की जड़ी बूटियां भी साथ छोड़ती जा रही हैं। बात वही है कि जब स्वस्थ लोग भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के नाम पर आक्सीजन या जड़ी बूटियों का अंधाधुंध उपयोग या भंडारण करेंगे तो किल्लत तो होगी ही।