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फूंका खुरहट स्टेशन, उखाड़ी पिपरीडीह-मऊ रेल पटरी

इरादे नेक हों दिल में देश भक्ति की प्रचंड भावना हिलोरें ले रही हो तो चट्टान सा हौसला स्वत उत्पन्न हो जाता है। कुछ ऐसी ही लहरें अगस्त 1942 में देश पर जान न्योछावर करने का इरादा पाले युवाओं के मन में दिखीं जब 21 अगस्त को मुट्ठी भर रणबांकुरों ने सुरक्षा व्यवस्था को तार-तार करते हुए खुरहट रेलवे स्टेशन फूंक दिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 06:07 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 06:07 PM (IST)
फूंका खुरहट स्टेशन, उखाड़ी पिपरीडीह-मऊ रेल पटरी
फूंका खुरहट स्टेशन, उखाड़ी पिपरीडीह-मऊ रेल पटरी

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : इरादे नेक हों, दिल में देश भक्ति की प्रचंड भावना हिलोरें ले रही हो तो चट्टान सा हौसला स्वत: उत्पन्न हो जाता है। कुछ ऐसी ही लहरें अगस्त 1942 में देश पर जान न्योछावर करने का इरादा पाले युवाओं के मन में दिखीं, जब 21 अगस्त को मुट्ठी भर रणबांकुरों ने सुरक्षा व्यवस्था को तार-तार करते हुए खुरहट रेलवे स्टेशन फूंक दिया। पिपरीडीह-मऊ के बीच रेल पटरी भी उसी दिन उखाड़ दी गई। एक के बाद एक मुकाम पर मिल रही शिकस्त ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया।

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फैजुल्लाहपुर एवं बैराटपुर के घने बगीचों में बनी रणनीति एवं पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सत्यराम सिंह एवं जहनियांपुर के रामदरश राय के नेतृत्व में रामविलास पांडेय, सुदामा चौहान एवं सूर्यवंश पुरी सहित दो अन्य नौजवान शाम का अंधेरा होते ही निकल पड़े। मिट्टी तेल से भरी बोतल हाथ में टार्च व दियासलाई लिए जत्था तमसा नदी के इकौनाघाट पहुंचा। सुदामा चौहान ने तैर कर नदी पार किया एवं लंगर बंधी नाव खोलकर दूसरे किनारे ले आए। हौसला बुलंद भारत मां के सपूत नदी पार कर पगडंडी की राह खुरहट स्टेशन जा पहुंचे। स्टेशन पर मौजूद लोगों को डरा-धमका कर क्रांतिवीरों ने स्टेशन मास्टर कक्ष का बंद ताला तोड़ दिया। कक्ष का सारा सामान एक तरफ कर घासलेट की बोतल उड़ेल दी गई। दियासलाई घिसते ही स्टेशन धू-धू कर जल उठा। आग की उठती लपटें देख हंगामा मचा पर तब तक आजादी के दीवाने किसी छलावे की भांति दूर-दूर तक नजर नहीं आए। उधर स्टेशन से सरपट भागे जंगजुओं के कदम इकौनाघाट पर ही रुके। फैजुल्लाहपुर में रात लगभग दस बजे पहुंचे रणवीरों ने सुदामा चौहान के घर डेरा डाला। अगले दिन पौ फटते ही सभी सेनानी एक-एक कर नई मंजिल की तरफ नए संकल्प के साथ किसी नए हंगामे का आगाज करने निकल पड़े। उधर 21 अगस्त 1942 की शाम को ही कुलदीप सिंह ने साथियों संग पिपरीडीह-मऊ के बीच रेल पटरी उखाड़ दिया। उक्त दोनों घटनाओं ने एक बार फिर हुकूमत को बौखला दिया। ऐसी तमाम घटनाओं से बिफरी पुलिस निर्दोष नागरिकों की गिरफ्तारी एवं फर्जी मुकदमों में फंसाए जाने का खेल शुरू किया। सेनानी पं रामविलास पांडेय ने अपनी पुस्तक 'कहां गए वो लोग' में स्पष्ट लिखा है कि खुरहट कांड में सुदामा चौहान के सिवाय अन्य को फर्जी तरीके से फंसाया गया, जबकि घटना को अंजाम देने वालों के पुलिस नाम तक न जान सकी। आज ही के दिन कमला को मिली सजा

क्षेत्र में क्रांति की मशाल सन 1942 के पूर्व से ही जल रही थी। हर क्रांति एवं आजादी की हर गाथा अधूरी रहेगी यदि घोसी क्षेत्र के रणबांकुरों का नाम न हो। नमक सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेने वाले मूंगमांस के कमला राय को वर्ष 1930 में आज के ही दिन तीन माह की कैद सुनाई गई।

बलिया तक मचाया विप्लव

लहू का रंग एक सा होता है पर माटी फर्क अवश्य डालती है। घोसी क्षेत्र का नौजवान जहां भी रहा मां भारती की आजादी हेतु छिड़ी बगावत से स्वयं को अलग न रख सका। क्षेत्र के टड़ियांव निवासी मोतीचंद कांदू ने 1942 की क्रांति में बलिया जनपद के सीयर रेलवे स्टेशन को आग के हवाले करने में सक्रिय भूमिका निभाया। बलिया में ही गिरफ्तार मोती को डेढ़ वर्ष की कैद भी मिली। घोसी में छात्रों ने ली अंगड़ाई

नौ अगस्त के बाद राष्ट्र में क्रांति की जो लहर उठी उसने हर बूढ़े व नौजवान को उद्वेलित कर दिया। छात्र भी आंदोलन से जुड़ गए। हाल यह कि पहले तो पुलिस ने समझाया बुझाया पर गतिविधियां जारी रहने पर कार्रवाई करने करने लगी। पिड़उथ सिंहपुर के रामअवध राय को नगर के मिडिल स्कूल से इसीलिए निष्कासित कर दिया गया। चिरैयोकोट के पलिया निवासी हरिहर प्रसाद गुप्त को भी स्कूल से निकाला गया जबकि सशस्त्र क्रांति के आरोप में महुआरी निवासी छात्र सूबेदार सिंह को तीन वर्ष कैद की सजा दी गई।


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