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तमसा के जहरीले पानी से दूधिए धो रहे बाल्टा

जागरण संवाददाता, मऊ : शहर की उत्तरी सीमा से होकर बहने वाली तमसा नदी का पानी शहर की नालों और प्रदूषण की मार झेलते-झेलते न सिर्फ काला हो गया है, बल्कि जहरीला भी है। वन्यजीवी भले ही इस पानी से प्यास बुझाने को मजबूर हों, लेकिन लोग इस पानी को पीना किसी भी दशा में स्वीकार नहीं करेंगे। तमसा के पानी के कितने तरह के खतरनाक जीवाणु पनप रहे हैं, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। लेकिन यह पानी दूध के रास्ते शहर के एक-एक घर में पहुंच रहा है। शहर में बाहर से दूध लेकर आने वाले अधिकांश दूधिए तमसा के पानी से ही अपने बाल्टे धोते हैं, फिर इन्हीं बाल्टों में दूध भरकर एक-एक घर तक पहुंचाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 09:09 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 09:09 PM (IST)
तमसा के जहरीले पानी से दूधिए धो रहे बाल्टा
तमसा के जहरीले पानी से दूधिए धो रहे बाल्टा

जागरण संवाददाता, मऊ : शहर की उत्तरी सीमा से होकर बहने वाली तमसा नदी का पानी शहर की नालों और प्रदूषण की मार झेलते-झेलते न सिर्फ काला हो गया है, बल्कि जहरीला भी है। वन्यजीवी भले ही इस पानी से प्यास बुझाने को मजबूर हों, लेकिन लोग इस पानी को पीना किसी भी दशा में स्वीकार नहीं करेंगे। तमसा के पानी के कितने तरह के खतरनाक जीवाणु पनप रहे हैं, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। लेकिन यह पानी दूध के रास्ते शहर के एक-एक घर में पहुंच रहा है। शहर में बाहर से दूध लेकर आने वाले अधिकांश दूधिए तमसा के पानी से ही अपने बाल्टे धोते हैं, फिर इन्हीं बाल्टों में दूध भरकर एक-एक घर तक पहुंचाते हैं।

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जीवन की गतिशीलता और पशुपालन श्रमसाध्य होने के चलते अधिकांश लोग दूध के लिए पशु पालने से परहेज कर रहे हैं। गांव के लोगों को भी दूध के लिए भटकते देखा जा रहा है, शहर की तो बात ही क्या। ऐसे में दूध खरीदना सबकी मजबूरी है। डीसीएसके पीजी कालेज में समाजशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर डा.आकांक्षा राय ने कहा कि निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों में दूध तभी खरीदा जाता है, जब बच्चे छोटे होते हैं और उन्हें दूध की जरूरत होती है। नगर पालिका की 60 फीसदी से अधिक आबादी निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की ही है। ऐसे में दूधिए अगर तमसा नदी में धुले बाल्टे में दूध रखकर बेच रहे हैं तो यह शहर की सेहत से सबसे बड़ा खिलवाड़ है। इसकी रोक-टोक जरूरी है। श्रीगंगा-तमसा सेवा मिशन के संरक्षक ज्ञानेंद्र मिश्र ने कहा कि तमसा के जल से चार दशक पहले लोग घर की दाल गलाते थे। लेकिन अब तमसा में इतना भौतिक और जैविक प्रदूषण है की यह किसी भी दशा में आचमन के लायक नहीं है। तमसा नदी के जल में धुले बर्तन में दूध बेचा जा रहा है तो यह बेहद खतरनाक है।


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