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बाबू बना रहे थे महाराष्ट्र की सरकार, फरियादी खड़े लाचार

कार्यालय से गायब मिला हर जिम्मेदार चैंबरों में गप्पे लड़ाते रहे बाबू - रजिस्ट्रेशन से लेकर डीएल के लिए बाहर परेशान रहे नागरिक - अपने चहेतों को बैठाकर बाबुओं का चलता रहा चाय पर चाय का दौर

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Nov 2019 04:43 PM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2019 04:43 PM (IST)
बाबू बना रहे थे महाराष्ट्र की सरकार, फरियादी खड़े लाचार
बाबू बना रहे थे महाराष्ट्र की सरकार, फरियादी खड़े लाचार

जागरण संवाददाता, मऊ : जिला मुख्यालय पर स्थित एआरटीओ कार्यालय का हाल बुरा है। पूरे दिन वाहन पंजीकरण व नवीनीकरण कार्य से संबंधित हजारों लोग विभाग में पहुंचते हैं और बाबू उन्हें इधर से उधर भटकाते रहते हैं। मंगलवार को हाल यह था कि बाबू अपने चैंबर में अपने चहेतों को बैठाकर चाय पर चाय का दौर चलाते हुए महाराष्ट्र में सरकार बना और गिरा रहे थे तो दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों का कहीं कोई अता-पता नहीं था। गप्पें मारने में कर्मचारी इतने बिजी थे कि उन्हें समस्याएं लेकर पहुंचे लोगों की सुनने का भी समय नहीं था। जागरण टीम ने मंगलवार को जब एआरटीओ दफ्तर का जायजा लिया तो हर चैंबर का कमोबेश यही हाल था और लोग परेशान थे।

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कार्यालय के बाहर कई लोग ऐसे मिले जिन्हें छोटे-छोटे कामों के लिए कई-कई दिनों से दौड़ाया जा रहा है। अधिकारियों के ऊपर क्षेत्र में चेकिग की भी जिम्मेदारी होने से दफ्तर के भीतर बाबुओं की ही मनमानी चलती है। इसके अलावा जिम्मेदारों के तमाम बैठकों में जाने के चलते भी बाबू अपने तरीके से वाहन संबंधी विभिन्न समस्याएं लेकर आने वालों को परेशान करते हैं। जागरण टीम ने जब एआरटीओ अवधेश कुमार के संबंध में जानकारी चाही तो उन्हीं के कार्यालय के समक्ष बैठे एक व्यक्ति ने पूछा कि आपका काम क्या है। बताया कि उनसे बातचीत करनी है तो उसने कहा कि वे नहीं हैं। कब तक आएंगे यह पूछने पर उसने कहा कि वह नहीं हैं बस हो गया। कहां गए हैं के सवाल पर उसने कहा कि कहीं बाहर गए हैं। यात्री कर माल कर अधिकारी मानवेंद्र सिंह के बारे में भी जब पूछा गया तो पता चला वह भी नहीं हैं। जिस व्यक्ति से यह सवाल पूछा गया, वह विभागीय कर्मचारी था भी या नहीं, लेकिन एआरटीओ अवधेश कुमार के चैंबर के दरवाजे के ठीक सामने एक कुर्सी पर शाही अंदाज में बैठा था। बाहर समस्या लेकर आने वालों की लंबी भीड़ लगी हुई थी। बाहर बैठे लोगों ने बताया कि यही नजारा रोज का रहता है।


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