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दोहरीघाट में बापू ने दिया था सत्याग्रह का मंत्र

अर¨वद राय, घोसी (मऊ) : 'साइमन गो बैक'। यह स्वर तत्कालीन आजमगढ़ जनपद के वर्तमान मऊ जिले से

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 04:42 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 10:51 PM (IST)
दोहरीघाट में बापू ने दिया था सत्याग्रह का मंत्र
दोहरीघाट में बापू ने दिया था सत्याग्रह का मंत्र

अर¨वद राय,

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घोसी (मऊ) : 'साइमन गो बैक'। यह स्वर तत्कालीन आजमगढ़ जनपद के वर्तमान मऊ जिले से इतनी बुलंदी से उठा कि आवाज साइमन के कानों तक जा पहुंची। धरना प्रदर्शन एवं काले झडों की घनी छाया ने महात्मा गांधी को इस कदर अभिभूत कर दिया कि 3 अक्टूबर 1929 को वह दोहरीघाट पहुंचने पर वह यहां रुकने को विवश हो गए। यहां उन्होंने राष्ट्र प्रेम एवं स्वाभिमान की ऐसी अलख जगाया कि यहां क्रांति की ज्वाला 1942 तक धधकती रही।

महात्मा गांधी 2 अक्टूबर 1929 को आजमगढ़ में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद 3 अक्टूबर को गोरखपुर जा रहे थे। दोहरीघाट में लोगों का ऐसा हुजूम जुटा था कि जयकारों एवं जनभावनाओं के वशीभूत बापू भीड़ को संबोधित करने से स्वयं को न रोक सके। उन्होंने नमक कानून, विलायती वस्त्रों के बहिष्कार एवं स्वाधीनता के लिए सत्याग्रह की राह पर चलने का तार्किक संदेश दिया। महात्मा गांधी की वाणी से मंत्रमुग्ध हर जनपदवासी ने हर हाल में स्वाधीनता प्राप्त करने हेतु सिर पर कफन बांधने का संकल्प लिया। शुरू हुआ क्रांति का नया अध्याय

यूं तो इस क्षेत्र में आजादी की ज्वाला 1857 से ही धधकती रही परंतु यहां पहुंचे तत्कालीन राष्ट्रपुरुष महात्मा गांधी का वक्तव्य जनपद की क्रांति में एक नया मोड़ ला दिया। पुराने लोग कहते हैं कि जनपद की माटी महज शस्य श्यामला ही नहीं है, यहां महिलाओं ने अपनी संतानों को ऐसा संस्कार दिया था कि केसरिया बाना भी इस धरती के युवाओं ने ओढ़ा और चहुंओर क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी थी। महात्मा गांधी के शब्दों ने इन देशभक्तों में एक ऊर्जा का संचार कर दिया। फिर तो इनकी गौरव गाथा इतिहास के पन्नों का स्वर्णिम अध्याय बन गई। हरिजन उत्थान एवं अछूतोद्धार समिति के तहत तमाम कार्य हुए। सर्वाधिक प्रभाव यह कि 'नमक सत्याग्रह 1930' एवं इसके बाद विलायती वस्त्रों की होली जलाने में इस क्षेत्र के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। 4 जनवरी 1932 को महात्मा एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल की गिरफ्तारी के बाद तो यहां भूचाल आ गया। बताते हैं 1942 की अगस्त क्रांति का बीजारोपण गांधी जी ने 3 अक्टूबर 1929 को ही कर दिया था।


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