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दुष्कर्म कांड सामने आने के बाद हास्टल होने लगा खाली

जागरण संवाददाता, मऊ : घोसी के शमशूल ओलूम निस्वां मदरसा में यूं तो कुल 1095 छात्राएं नामांि

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 10:42 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 10:51 PM (IST)
दुष्कर्म कांड सामने आने के बाद हास्टल होने लगा खाली
दुष्कर्म कांड सामने आने के बाद हास्टल होने लगा खाली

जागरण संवाददाता, मऊ : घोसी के शमशूल ओलूम निस्वां मदरसा में यूं तो कुल 1095 छात्राएं नामांकित हैं। इनमें से आधी दूर-दराज के क्षेत्रों या गैर जनपदों की हैं। इस कारण से वे मदरसा कैंपस में ही संचालित छात्रावास में रहती हैं। चार मंजिला इस भवन के तीसरे और चौथे तल पर लड़कियों का हास्टल है। एक कमरे में 20 से 25 छात्राओं को एडजस्ट किया गया है। छात्राओं के भोजन के लिए मेस की व्यवस्था है। हास्टल में 4 अगस्त की रात में दुष्कर्म की घटना सामने आने के बाद 5 अगस्त से ही हास्टल खाली होने लगा था। अधिकांश लड़कियां चुपचाप अपने अभिभावकों को बुलाकर निकल ली थीं। सात अगस्त तक तो अधिकांश छात्राएं जा चुकी थीं। खुद पीड़िता भी 7 अगस्त को घर चली गई और अपने परिजनों को रो-रोकर सारा हाल बताया तो रविवार की शाम को उसकी मां ने बेटी संग कोतवाली पहुंचकर तहरीर दी।

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हालांकि इतनी बड़ी घटना के सामने के आने के बाद भी सोमवार को मदरसे में क्लास चलते रहने का दावा किया गया। मदरसे में कुल 40 शिक्षक पढ़ाते हैं। घटना में मुकदमा दर्ज होने के बाद से आरोपित प्रबंधक और दाई लापता हैं। पुलिस उनकी टोह में दबिश दे रही है। हास्टल के लिए नहीं ली गई है प्रशासन से अनुमति

मदरसे में हास्टल चलाने के लिए प्रशासन या संबंधित विभाग से कोई अनुमति नहीं ली गई है। मदरसे के पास केवल शिक्षण कार्यों का ही पंजीकरण है। इस संबंध में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी लालमन ने बताया कि अमूमन आम तौर पर मदरसों के हास्टल इमदाद पर चलते हैं। उन्हें सरकारी सहायता नहीं मिलती, इसलिए उनके हास्टल से विभाग का कोई लेना-देना नहीं रहता। यहां तक कि विभागीय अधिकारी भी दिन के समय जाते हैं तो केवल कक्ष-शिक्षण का ही निरीक्षण करके चले आते हैं। छात्राओं के लिए की गई व्यवस्था पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया।

अब सवाल यह उठता है कि जहां इतनी संख्या में लड़कियां या लड़के रहते हों, उनकी सुरक्षा, भोजन की गुणवत्ता या अन्य सुविधाओं के मामले में सरकारी विभागों की दखलंदाजी सिर्फ इस बिना पर नहीं हो सकती कि वे सरकारी मदद नहीं लेते। क्या इमदाद पर चलने वाली संस्थाओं के लिए कोई मानक नहीं है।


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