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बेसहारा पशुओं के संरक्षण में प्रशासन फेल, उपजने लगा आक्रोश

जनपद में हजारों की तादाद में विचरण कर रहे बेसहारा पशुओं से रबी सीजन पर संकट छा गया है। दलहनी-तिलहनी फसलें तो लगभग बर्बादी ही हो चली हैं गेहूं भी अब इन पशुओं के निशाने पर है। वहीं जिला प्रशासन शासन को झूठे आंकड़े प्रेषित कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। दूसरी तरफ किसानों की गाढ़ी कमाई एक झटके में बेसहारा पशु चट कर जा रहे हैं। प्रशासनिक अक्षमता का ही परिणाम रहा कि सिरसा में किसानों का आक्रोश जवाब दे गया। बेसहारा पशुओं का संरक्षण कर पाने में फेल्योर प्रशासन का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Dec 2019 06:46 PM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2019 06:46 PM (IST)
बेसहारा पशुओं के संरक्षण में प्रशासन फेल, उपजने लगा आक्रोश
बेसहारा पशुओं के संरक्षण में प्रशासन फेल, उपजने लगा आक्रोश

जागरण संवाददाता, मऊ : जनपद में हजारों की तादाद में विचरण कर रहे बेसहारा पशुओं से रबी सीजन पर संकट छा गया है। दलहनी-तिलहनी फसलें तो लगभग बर्बादी ही हो चली हैं, गेहूं भी अब इन पशुओं के निशाने पर है। वहीं जिला प्रशासन शासन को झूठे आंकड़े प्रेषित कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। प्रशासनिक अक्षमता का ही परिणाम रहा कि रविवार को सिरसा में किसानों का आक्रोश जवाब दे गया। बेसहारा पशुओं का संरक्षण कर पाने में फेल्योर प्रशासन का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं।

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जिले में बेसहारा पशुओं की संख्या 20 हजार के आसपास है। जनपद का कोई ऐसा गांव नहीं होगा जहां सैकड़ों की तादाद में बेसहारा पशु विचरण न कर रहे हों। ऐसे पशु आए दिन किसानों के पसीने की कमाई को चर रहे हैं। वहीं प्रशासन का मानना है कि जनपद में लगभग 2200 बेसहारा पशु हैं। इनमें से 1221 पशुओं को संरक्षित किया जा रहा है। हकीकत देखें तो इतने पशु केवल आफिसर्स कालोनी, विकास भवन व कलेक्ट्रेट के इर्द-गिर्द घूमते मिल जाएंगे। हजारों की तादाद में घूमते बेसहारा पशुओं के चलते दलहनी में चना, मसूर, मटर व अरहर तथा तिलहनी में सरसों लगभग बर्बाद हो गई है। सितंबर अक्टूबर में दलहनी-तिलहनी की अगेती बोआई होने के चलते बेसहारा पशुओं का निवाला पहले यही फसलें बनी। अब जबकि अगेती गेहूं भी खेतों में हरे हो गए हैं तो अब पशु गेहूं की फसल को बर्बाद कर रहे हैं। बेसहारा पशु इन फसलों को चर ही नहीं रहे बल्कि रौंद भी रहे हैं।

केवल बैठकों तक सिमटा सिस्टम

यूं तो सूबे के मुख्यमंत्री ने ऐसे पशुओं के संरक्षण के लिए प्रति न्याय पंचायतवार अस्थाई गौ-आश्रय केंद्र बनाने के निर्देश दिए थे। शुरूआत में प्रशासन तो हरकत में आया परंतु अपनी आदत के अनुसार केवल बैठकों तक सीमित हो गया। प्रशासनिक बैठकों में आलाधिकारी समीक्षा करते हैं और निर्देश जारी कर केवल रस्मअदायगी की जाती है। इसके बाद शासन को जनपद में केवल 1000 पशुओं के बाहर होने का झूठे आंकड़े प्रेषित कर बरगलाता रहता है।

पशुओं के खानपान में भी गोलमाल

योगी सरकार ने बेसहारा पशुओं के रखरखाव के लिए वृहद कार्ययोजना बनाई है। शासन पशुओं के खानपान के लिए प्रति बेसहारा पशु 30 रुपया देता है। इधर पैसा तो आता है पर पशुओं पर खर्च नहीं करके संख्या अधिक दिखा दी जाती है। गौ आश्रय केंद्रों पर पशुओं के खानपान की स्थिति बद से बदतर है। सूखा भूसा डालकर उन्हें छोड़ दिया जाता है। प्वाइंटर--

20,000 - जनपद में बेसहारा पशुओं की संख्या

2100 - सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल बेसहारा पशुओं की संख्या

1221 - जनपद में संरक्षित किए गए पशुओं की संख्या

13 - ग्रामीण क्षेत्रों में बने अस्थाई गौ-आश्रय केंद्र

09 - नगरीय क्षेत्र में बने गौ-आश्रय केंद्र

1037 - ग्रामीण क्षेत्रों में गौ आश्रय केंद्रों पर रखे गए पशुओं की संख्या

187 - नगरीय गौ-आश्रय केंद्रों पर रखे गए पशु प्वाइंटर--

जनपद में बोई जा रही फसलों का हेक्टेयर में आंकड़ा

96.77 हजार - गेहूं

2.5 हजार - जौ

1.5 हजार - चना

2000 - मटर

.25 हजार - सरसो

सरकार को बदनाम कर रहा प्रशासन

प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री किसानों के हित के लिए तमाम योजनाएं संचालित कर रहे हैं। सोच है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जाए परंतु प्रशासन झूठे आंकड़ों से खेल रहा है। मोटी तनख्वाह वाले अधिकारियों को किसानों का दर्द नहीं पता। मुख्यमंत्री के प्रत्येक न्याय पंचायत में गौ-आश्रय केंद्र खोलने के आदेश को प्रशासन दरकिनार कर दिया है। इसके चलते आज रबी सीजन पर संकट खड़ा हो गया है।

- राकेश सिंह, किसान नेता व पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत।


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