व्यक्ति की प्रकृति और प्रवृत्ति का दर्पण है नाड़ी
मऊ : नाड़ी विज्ञान भारतवर्ष का अति प्राचीन विज्ञान है। यह एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति की प्रकृति ही नहीं प्रवृत्ति के बारे में भी बताता है। यही नहीं शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रोगों के बारे में भी इसकी सहायता से सब कुछ जाना जा सकता है। भविष्य के बारे में भी इससे जानकारी ली जा सकती है। यह कहना है आर्ट आफ लिविंग परिवार से जुड़े आध्यात्मिक संत श्री श्री रविशंकर जी के शिष्य नाड़ी रोग विशेषज्ञ डा.दिनेश का। वे बुधवार को जागरण से वार्ता कर रहे थे।
नाड़ी रहस्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि नाड़ियां ही पूरे शरीर में रक्त परिसंचरण का कार्य करती हैं। यह एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें बिना किसी प्रयोगशाला जांच के शरीर के किसी भाग में होने वाले विकार के बारे में बताया जा सकता है, यही नहीं आयुर्वेद के अनुसार उसका उपचार भी किया जा सकता है। बताया कि शरीर में होने वाले विकारों की उत्पत्ति के लिए शरीर में पाये जाने वाले त्रिदोष कफ, पित्त और वायु जिम्मेदार हैं। ये तीनों दोष प्रत्येक व्यक्ति में जन्मना पाये जाते हैं। शरीर में इनकी मात्रा और संतुलन की स्थिति शरीर के स्वास्थ्य, मन और ब़ुद्धि के विकास के लिए उत्तरदायी है।प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में पाई जाने वाली इनकी मात्रा उक्त व्यक्ति के प्रकृति और प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार होती है। इनके असंतुलन से उत्पन्न असहजता ही रोगों और विकारों को जन्म देती है। इनके कारण होने वाले परिवर्तनों से नाड़ी की गति प्रभावित होती है। नाड़ी की गति, उसकी आवाज में परिवर्तन शरीर और मानस में होने वाले परिवर्तनों की सूचना देता है। त्रिदोषों में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर रोगों की पहचान कर उनका समुचित निदान किया जाता है। जीवन शैली में परिवर्तन लाकर त्रिदोषों से मुक्ति पाकर स्वस्थ रहा जा सकता है।
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