कागजों से न निकला काम, जमींदोज हुईं उम्मीदें
परदेस से आए 14 फीसद प्रवासी मजदूरों को ही अब तक मिल पाया है काम हालात जिले में बेबस मजदूर मजबूरी में बेलदारी भी करने को हैं तैयार जिले का सरकारी विभाग अभी सबके जॉब कार्ड ही नहीं बना सका
केस-एक :
कराहरी के आंबडेकर मुहल्ला निवासी देवीचरन दिल्ली के गोविद नगर में टुल्लू पंप मरम्मत का काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हो गया, तो जैसे-तैसे घर चले आए। खेती नहीं है। ऐसे में समस्या परिवार पालने की आ गई। दो माह से खाली बैठे हैं। ग्राम प्रधान को नाम नोट करा दिया। जो हाथ पलक झपकते मोटर ठीक करते हैं वह बेलदारी करने को तैयार हैं, लेकिन अब तक काम नहीं मिला। मनरेगा से काम करने को जॉब कार्ड तक नहीं बन सका। केस-दो :
कराहरी के ही ब्रज नगरिया निवासी राजन सिंह नोएडा में सिक्योरिटी गार्ड थे। लॉकडाउन के तीन दिन पहले गांव आए थे। फिर वापस नहीं जा सके। अब वहां काम की उम्मीद भी नहीं बची। खेती नहीं है, ऐसे में तीन सदस्यों का परिवार पालने का संकट है। पंजीकरण तक नहीं हुआ और मनरेगा से ही काम करने को जॉबकार्ड तक नहीं बन सका है। रात इस फिक्र में जागते बीत रही है कि अब क्या होगा। आश्वासन तो मिल रहे हैं लेकिन अभी आंखों के सामने अंधेरा है। केस-तीन :
ग्राम पंचायत कराहरी के सौदान सिंह फरीदाबाद में एक प्राइवेट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में कर्मचारी थे। अब गांव में हैं। सात सदस्यों का परिवार है। गांव में प्रधान से पंजीकरण कराया, हाथ अभी भी बे-काम हैं। उम्मीदें जमींदोज। कहते हैं, अब फरीदाबाद जाकर भी क्या करूंगा। काम तो मिलने से रहा। लेकिन परिवार कैसे पालोगे? इस सवाल पर सौदान शून्य में निहारने लगते हैं। कहते हैं कि भगवान पर सब छोड़ दिया।
जागरण संवाददाता, मथुरा : जिदगी के कई बरस परदेस में काटकर आपदाकाल में घर लौटे प्रवासी मजदूरों की जिदगी के ये स्याह सच हैं। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो गया, नौकरी छूट गई। गांव इस उम्मीद में आए कि जैसे-तैसे कट जाएगी, लेकिन यहां भी मजदूरों के हाथ खाली हैं। सरकार ने व्यवस्था तो प्रवासी मजदूरों के हाथों को काम देने की कर दी, कुछ का पंजीकरण भी हुआ, लेकिन अभी फाइलें फिलहाल धूल फांक रही हैं। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें तो जिले में करीब 9503 प्रवासी मजदूर आए। ये वह बेबस मजदूर हैं, जो गांव आए थे और ग्राम प्रधान ने इनका ब्यौरा एकत्र किया, लेकिन सच्चाई इससे इतर है। बड़ी संख्या में मजदूर तो ऐसे हैं, जिनका पंजीकरण ही अब तक नहीं हो सका। बेबसी ऐसी है कि कहीं काम भी नहीं मिल रहा है। ग्राम प्रधान से लेकर अन्य जिम्मेदार केवल आश्वासन दे रहे हैं। कहते हैं कि जो पैसा था, खर्च हो गया, अब तो परिवार की गाड़ी खींचना ही मुश्किल है। जिम्मेदार थोड़ा ध्यान देंगे, तो काम हो जाएगा। प्रशासन ने भी काम देने के बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन धरातल पर पूरी तरह नहीं उतर पाए। सरकारी सिस्टम की गणित ही बताती है कि सारे प्रवासी मजदूरों को काम मिलने पर वक्त लगेगा। सरकारी आंकड़े में 9503 प्रवासी मजदूर आए, इनमें 25 सौ के ही जॉब कार्ड बन सके हैं। इनमें भी महज 1410 को ही काम मिल सका है। 760 स्थानों पर मनरेगा से काम शुरू होने का दावा भी किया जा रहा है। सरकारी आंकडे़ ही देखें तो अभी महज 14 फीसद प्रवासी मजदूरों को ही काम मिल सका है। बाकी के 86 फीसद की आंखों में उम्मीदें कैद हैं। ये सपने भी अब धीरे-धीरे आंखों में ही दम तोड़ रहे हैं। क्या कहते हैं सीडीओ
जो भी प्रवासी मजदूर आए हैं, उनका पंजीकरण कर रोजगार मनरेगा से अधिक से अधिक उपलब्ध कराया जा रहा है। जॉब कार्ड बनाने का अभियान तेज है, जल्द ही सबके जॉब कार्ड बनकर उन्हें काम मुहैया कराया जाएगा।
-नितिन गौड़, सीडीओ 1277 का पंजीकरण, योजना का इंतजार
मथुरा : श्रम विभाग ने भी 1277 मजदूरों का पंजीकरण किया है। ये मजदूर निर्माण कार्यों से जुडे़ हैं। शेल्टर होम या अन्य स्थानों पर रुके प्रवासी मजदूरों से फोन पर श्रम विभाग ने ये जानकारी जुटाई है। इनमें 212 प्रवासी मजदूर हैं जो निर्माण कार्य की श्रेणी में हैं। ऐसे मजदूरों की सूची बनाई गई है। सहायक श्रमायुक्त प्रभात कुमार ने बताया कि ऐसे मजदूरों को सरकार से जब भी कोई योजना आएगी, तो उनको काम दिया जाएगा।