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हर साल कीमती 'खाद' खाक कर रहे किसान

फसल के अवशेष जलाने से खाली हो रहा पोषक तत्वों का बैंक मिट्टी की क्षमता में आ रही कमी प्रदूषण भी रहा फैल

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 12:37 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 06:20 AM (IST)
हर साल कीमती 'खाद' खाक कर रहे किसान
हर साल कीमती 'खाद' खाक कर रहे किसान

मथुरा, योगेश जादौन। जिन खेतों से सोने सी बालियां पैदा होती हैं, गेहूं कटाई के कुछ दिनों बाद वही खेत रात में आग की लपटों में जल रहे होते हैं। सुबह तक पूरा खेत कालिख में बदल जाता है। यह कालिख गेहूं के उन अवशेष की है, जो कंपाइन मशीन से गेहूं काटने के बाद खेत में रह जाते हैं। इन्हें जलाने से न केवल कीमती भूसा जलता है बल्कि धरती की कोख में पल रहे सूक्ष्म जीव और पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। इससे वह नैसर्गिक खाद बर्बाद हो रहा है, जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और कार्बन शामिल है।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक गेहूं के डंठलों में पोषक तत्वों का बैंक होता है। यह डंठल खेत में ही सड़ना चाहिए ताकि मिट्टी में सूक्षम पोषक तत्व बने रहें। इनमें बोरॉन भी मौजूद होता है, जिसकी कमी से गेहूं में दाने नहीं पड़ते।

गेहूं का भूसा अच्छी कीमत में बिकता है। गर्मी में चारे की कमी होने पर तो इसकी कीमती 700 रुपये कुंतल तक पहुंच जाती है। फसल पर यही कीमत गिरकर 350 तक रह जाती है। इस कारण गेहूं की कटाई आमतौर पर हाथों से की जाती है, लेकिन जिले के कुछ हिस्सों में हार्वेस्टर या कंबाइन मशीन से इसकी कटाई की जाती है। कंबाइन की कटाई में गेहूं के अवशेष खेत में ही रह जाते हैं और उनका भूसा नहीं बन पाता। ऐसे में आमतौर पर किसान रात में इन डंठलों में आग लगा देता है। -यह होता है नुकसान-

उपनिदेशक कृषि धुरेंद्र सिंह का कहना है कि जिले में हालांकि कम किसान ही ऐसा कर रहे हैं, लेकिन यह प्रवृति खतरनाक है। इसमें कार्बन, पोटाश, कैल्शियम और मैग्नीशियम मौजूद रहता है। मथुरा की मिट्टी में कार्बन की मात्रा वैसे भी काफी कम है। यह पोषक तत्व सूक्ष्म मात्रा में ही होते हैं, लेकिन बेहद जरूरी हैं। -क्या है आइएआरआइ की रिपोर्ट-

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(आइएआरआइ) की रिपोर्ट के मुताबिक एक हेक्टेयर खेत में नरवाई जलाने से 18.82 किलोग्राम नाइट्रोजन, 7.24 किलोग्राम फास्फोरस और 63.48 किलोग्राम पोटाश का नुकसान होता है। सरकार के नियम-

उपनिदेशक कृषि धुरेंद्र सिंह ने बताया कि खेती के अवशेष जलाने पर रोक है। ऐसा करते हुए पाए जाने पर जुर्माने का प्रावधान है। इसके लिए राजस्व के कर्मचारी निगरानी करते हैं। धान की पराली अधिक जलाई जाती है, गेहूं के अवशेष के मामले कम हैं।


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