साधना का अंग है देवालयी संस्कृति
फोटो एमटीएच - 119 ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में देवालयी संस्कृति पर एकाग्र वेबिनार
संवाद सहयोगी, मथुरा साहित्यकार एवं कला इतिहासकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि ब्रज की मंदिर संस्कृति का विस्तार भारतीय संस्कृति में हुआ है। देवालयी संस्कृति साधक की साधना का अंग है। भगवान की लीला से जुड़े सभी उपादान मंदिर के समान ही होते हैं।
मंदिर गोदाबिहार स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में सोमवार को देवालय संस्कृति पर एकाग्र श्रृंखला के तहत ऑनलाइन शोध वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार व कला इतिहासकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान एवं उससे जुड़े सभी कर्मी, शोधार्थी साधुवाद के पात्र हैं, जो वैश्विक महामारी के दौर में शोधार्थियों और विद्वानों के लिए संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं।
वेबिनार में शोधार्थियों ने शोधपत्रों का वाचन किया। दिति रंजिता रे ने 'ब्रज की देवालयी कला सांझी की परंपराओं' पर कहा लोक की कला सांझी का देवालयों में नवाचार हुआ। पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में गृह मंदिर परंपरा पर मैत्री गोस्वामी ने कहा पुष्टिमार्ग की सेवा परंपरा में अर्पण का भाव समाहित है। ठाकुर को सुख पहुंचाने के भाव से सेवा भावना प्रधान है। हितांगी ब्रह्मभट्ट ने पिछ्वाई कला पर शोधपत्र पढ़ते हुए कहा कि पिछ्वाई में भगवान की लीलाओं के अतिरिक्त ऋतुओं के अनुसार भी चित्रण किया जाता है। डॉ. आरती शुक्ला ने पत्रावली:-'देव विग्रहों का श्रृंगारिक आलेखन' पर ठाकुरजी के श्रीविग्रहों पर किए जाने वाले श्रृंगार के पक्षों प्रकाश डाला। संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी ने कहा ब्रज के मंदिरों में अनेक कलाएं विकसित हुईं। शोध अध्ययन की ²ष्टि से इनका क्षेत्र व्यापक व विस्तृत है। मंगलाचरण अचित्य प्रह्लाद ने किया। डॉ. मीनाक्षी जोशी, राजेश सेन, गोपाल शरण शर्मा, वर्षा तिवारी आचार्य, मानव मेहरा, स्नेहा नगरकर, योगेंद्र सिंह छौंकर, सुशांत भारती, शैरिल शर्मा, ज्योति शर्मा, यामिनि कौशिक, सपना शर्मा शामिल हुईं। संयोजन व संचालन परिधि डेविड मैसी व सुरभि पांडेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन अमनदीप वशिष्ठ ने किया।