Move to Jagran APP

किसानों के पुराने दुश्मन का फसलों पर आक्रमण

जागरण संवाददाता मथुरा किसानों के पुराने दुश्मन टिड्डी (ग्रास हूपर) दल के आक्रमण का खतरा अब मथुरा आगरा और फीरोजाबाद में फसलों पर में मंडरा रहा है। चार दिन पहले एक और पांच किलोमीटर के दायरे में फैले दो दल ग्वालियर होकर झांसी की तरफ कूच कर गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 12:42 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 12:42 AM (IST)
किसानों के पुराने दुश्मन का फसलों पर आक्रमण
किसानों के पुराने दुश्मन का फसलों पर आक्रमण

जागरण संवाददाता, मथुरा : किसानों के पुराने दुश्मन टिड्डी (ग्रास हूपर) दल के आक्रमण का खतरा अब मथुरा, आगरा और फीरोजाबाद में फसलों पर में मंडरा रहा है। चार दिन पहले एक और पांच किलोमीटर के दायरे में फैले दो दल ग्वालियर होकर झांसी की तरफ कूच कर गए हैं। अभी तीसरा दल राजस्थान के दौसा जिले में है। सोमवार को करीब एक बजे तक करौली के रास्ते होकर फीरोजाबाद, आगरा, मथुरा जिले के किसी भी हिस्से में ये दल दाखिल हो सकता है। कृषि विभाग ने आगरा मंडल में अलर्ट जारी कर दिया है।

loksabha election banner

सामूहिक जीवन जीने वाली टिड्डी झुंड में फसलों पर आक्रमण कर रहे हैं। कपास, मूंग, ज्वार, उड़द, मक्का और शाकभाजी की कोमल पत्तियों को अपने वजन से दस गुना अधिक खाते हैं। इन फसलों की पत्तियों के खत्म होने पर ये दल पेड़ और पौधों की पत्तियों को भी निगल रहे हैं। दिन भर उड़ने वाला टिड्डी दल रात को पेड़, झाड़ी और फसलों के बीच में अपना बसेरा करता है। सूरज उगने के बाद ये फिर उड़ना शुरू कर देते हैं। टिड्डी दल के आने की आशंका ने किसानों की नींद उड़ा दी है। बदलते हैं रंग

गुलाबी रंग की टिड्डी धीरे-धीरे धुंधले सलेटी व भूरपान लेते हुए लाल रंग में बदल जाती है। परिपक्व अवस्था में पहुंचने पर ये पीले रंग के हो जाते हैं और अंत में इनकी आकृति काली हो जाती है। शिशु टिड्डी भी झुंड के साथ चलती है।

- विभाति चतुर्वेदी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी

ये है जीवन चक्र :

-10 मीटर गहराई तक नमी वाली जमीन को चुनते हैं

-6 इंच गहराई में अपनी दुम को घिस कर अंडे देते हैं

-3-4 गुच्छे अंडे एक मादा टिड्डी देती है

-60-80 एक गुच्छे में अंडे होते हैं

-3-4 दिन तक अंडे देने के बाद एक स्थान पर बसेरा करते हैं

-10-12 दिन में अंडे से शिशु टिड्डी पैदा होने लगते हैं

-30 दिन में अनुकूल परिस्थितियों में ये वयस्क होते हैं।

-2-2.5 इंच लंबे कीट होते हैं और उम्र दर उम्र रंग बदलते हैं

-3 गुणा 5 किलोमीटर के दायरे में फैल कर बसेरा करते हैं

-6-7 बजे टिड्डी दल जमीन पर बैठ जाते हैं

-8-9 बजे के करीब अपने अगले पड़ाव के लिए उड़ते हैं

-10 सप्ताह तक ये जीवित रहते हैं

------------------ -ऐसे करें बचाव

-खेतों में आग जलाकर, पटाखे फोड़कर, थाली बजाकर, ढोल- नगाड़े बजाकर आवाज करें।

-क्लोरपीरिफॉस, साइपरमैथरीन, डेल्टा मेथ्रिन कीटनाशकों का टिड्डी दल के ऊपर छिड़काव करें।

-टिड्डी दल के बैठने से लेकर उठने के बीच में ही छिड़काव करें ।

1962 में हुआ था पहला हमला

वर्ष 1962 में टिड्डी दल पाकिस्तान से चलकर मथुरा समेत कई जिलों में आ गया था। उस समय कृषि विभाग के पास कीटनाशक भी नहीं थे। संसाधन भी कम थे। तब खेतों के किनारे खाई खोदकर उनमें कूड़ा-करकट भर दिया गया था। टिड्डी दल के बैठते ही उसमें आग लगा दी गई थी। 1995 में भी इसका प्रकोप हुआ था। तब कीटनाशक के स्प्रे से इसको नियंत्रित किया गया था।

-केएल वर्मा, कटैला राया।

टिड्डी किसी एक फसल को अपना भोजन नहीं बनाती है। वह हरी पत्तियों को खाती है, चाहे वह फसल की हो या फिर पेड़ पौधों की। टिड्डी दल पर नियंत्रण करने के लिए गर्मियों में खेतों की मेड़ और गूज की सफाई कर देनी चाहिए। तेज धूप के कारण उसके अंडे -बच्चे मर जाएंगे। जहां भी यह दिखाई दें, वहां के किसानों को सामूहिक रूप से कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। तभी इस पर नियंत्रण किया जा सकता है।

-डॉ. एसके मिश्र, वरिष्ठ कृषि विज्ञानी कृषि विज्ञान केंद्र।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.