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नमाज पर अदालत का निर्णय से हिंदू संत-महंत में खुशी और दारुल उलूम में नाराजगी

नमाज के लिए मस्जिद की जरूरत को सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया है। अदालत के इस निर्णय का संत समाज ने खुलकर स्वागत किया है। हालांकि दारुल उलूम ने नाराजगी जाहिर की है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 27 Sep 2018 09:27 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 08:21 AM (IST)
नमाज पर अदालत का निर्णय से हिंदू संत-महंत में खुशी और दारुल उलूम में नाराजगी
नमाज पर अदालत का निर्णय से हिंदू संत-महंत में खुशी और दारुल उलूम में नाराजगी

मथुरा (जेएनएन)। हिंदू धर्मावलंबियों ने अदालत के फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए खुशी जताई है। नमाज के लिए मस्जिद की जरूरत को सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया है। अदालत के इस निर्णय का संत समाज ने खुलकर स्वागत किया है। हिंदू धर्मावलंबियों ने अदालत के फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए खुशी जताई है। संतों का मानना है कि अब जगह-जगह बन रही मस्जिदों के निर्माण पर रोक लग सकेगी। संतों के मुताबिक अदालत का निर्णय उचित, दूरदर्शी और सौहार्द का माहौल बनाने वाला है। इसके विपरीत सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम, देवबंद ने नाराजगी जाहिर की है। 

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पुनर्विचार करे सुप्रीम कोर्ट: दारुल उलूम

सहारनपुर स्थित संस्था  दारुल उलूम के मोहतमिम (वीसी) मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मस्जिद अल्लाह का घर होती हैं। इस्लाम मजहब का अभिन्न अंग हैं। सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें पूरा यकीन है कि देश की सर्वोच्च अदालत इंसाफ करेगी। यह मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा है, इसलिए इसमें आगे की कार्यवाही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ही करेगा। 

इस्लाम में मस्जिदों की अहमियत

जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मौलाना हसीब सिद्दीकी ने कहा कि अल्लाह ने मस्जिदों को आबाद करने का हुक्म दिया है। इतना ही नहीं पैगंबर मोहम्मद साहब ने बिना किसी मजबूरी के मस्जिदों के बाहर नमाज पढऩे को भी पसंद नहीं फरमाया है। फतवा ऑन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारूकी ने कहा कि इस्लाम में मस्जिदों की अहमियत है। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने भी मक्का छोडऩे के बाद मदीना पहुंचने पर मस्जिद का निर्माण कराया था। 

हम पहले से कहते थे : शंकराचार्य  

मथुराः जगदगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि नमाज मस्जिद में पढ़ी जाए, ये जरूरी नहीं है। पहले से ही हम यही बात कहते आए हैं कि मुस्लिम कहीं भी नमाज पढ़ते आए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया तो ठीक है, लेकिन अब राम मंदिर पर जल्द सुनवाई हो और निर्माण जल्द शुरू किया जाए। 

अदालत का दूरदर्शी निर्णय : स्वामी ज्ञानानंद  

गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज अदालत के इस निर्णय को ऐतिहासिक और दूरदर्शी बताते हैं। उन्होंने कहा कि बाबरी ढांचे में तो पहले भी नमाज नहीं पढ़ी जाती थी, लेकिन अदालत ने ये जो निर्णय दिया है, इससे खुलापन आएगा और समाज में सौहाद्र्र का वातावरण बनेगा। 

पहले हो चुका था यह निर्णय : अविमुक्तेश्वरानंद  

दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि 1994 में फारुखी केस में यह फैसला दिया गया था। वर्तमान न्यायाधीशों ने पुराने फैसले को उचित ठहराया है। इस केस में अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति जिसके वे उपाध्यक्ष हैं, उनके अधिवक्ता परमेश्वर नाथ मिश्र ने भी अपना पक्ष रखा है। अदालत ने हमारे पक्ष और प्रमाणों को स्वीकार किया। 


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