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' सुर' के दीपों से जिदगी का अंधेरा मिटा रहे 'सूर'

तमाम नेत्रहीन परिक्रमा मार्ग में भजन सुनाकर श्रद्धालुओं के दान से चला रहे आजीविका

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 05:25 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 05:25 AM (IST)
' सुर' के दीपों से जिदगी का अंधेरा मिटा रहे 'सूर'
' सुर' के दीपों से जिदगी का अंधेरा मिटा रहे 'सूर'

रसिक शर्मा, गोवर्धन (मथुरा): महाकवि सूरदासजी अपने काव्य से गिरिराजजी को रिझाते थे। इस परंपरा को आज के सूर अब भी निभा रहे हैं। संगीत साधना से उन्होंने अंधता को अभिशाप नहीं बनने दिया। गोवर्धन परिक्रमा में सुर के साथ जिदगी से तालमेल बिठाकर आकर्षण बने हैं और अपनी आजीविका चला रहे हैं।

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गिरिराजजी की सात कोस परिक्रमा मार्ग में जतीपुरा-गोवर्धन, गोवर्धन-राधाकुंड, गोवर्धन-आन्यौर के बीच हवाओं में मिठास घोलता संगीतमय हरिनाम संकीर्तन बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। भक्ति में सुर के गजब समावेश से सराबोर भक्तगण सहायता को भी हाथ बढ़ा देते हैं। यह राशि उस समय और बढ़ जाती है, जब भक्तों को पता लगता है कि यह संगीत नेत्रहीन दिव्यांग सुना रहे हैं। दान की राशि से ही इन दिव्यांगों का जीवन यापन हो रहा है। ब्रेल लिपि की पुस्तकों से ये शिक्षित तो हुए हैं, पर किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिल रही है।

गरीब और असहाय लोगों की मदद का दावा करने वाले प्रशासन का कोई नुमाइंदा इन नेत्रहीनों की वेदना सुनने कभी नहीं आया, जबकि सरकारी मदद इनके जिदगी के मुश्किल सफर को आसान बना सकती है। करीब दो दर्जन नेत्रहीन हर वक्त परिक्रमा मार्ग में मंच बनाकर ढोलक और हारमोनियम बजा रहे हैं।

रायपुर निवासी सुरेश ने बताया कि उनकी शिक्षा ब्रेल लिपि की पुस्तक से हुई है। नौकरी अथवा भोजन का प्रबंध सरकारी सहायता से मिलना चाहिए। कुम्हेर (राजस्थान) के रहने वाले शंकर का कहना है कि अंधता का अभिशाप दूर करने के लिए ही वह गोवर्धन आए हैं। यहां आकर सुर संगीत के दीपों से जिदगी का अंधेरा दूर कर रहे हैं। भीलवाड़ा (राजस्थान) निवासी शैलेश ने बताया कि उनकी आजीविका परिक्रमार्थियों के आवागमन पर टिकी है। उन्हें हुनर के साथ भक्ति का भी मौका मिल रहा है। कोलकाता के जगवीर कहते हैं कि संगीत की साधना ने ही जिदगी जीने की राह दिखाई है। ब्रेललिपि से शिक्षा उन्हें नौकरी नहीं दिला सकी। श्री गिरिराज गोवर्धन अंध विद्यालय इनको हुनर बांटने में मदद कर रहा है। कूट भाषा है ब्रेल:

ब्रेल एक कूट भाषा है, जिसमें वर्णों और संपूर्ण अक्षरों की प्रस्तुति के लिए सतह पर उभारों और अभिज्ञानों का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक जटिल भाषा है, जिससे अंधा व्यक्ति पढ़ने में समर्थ हो जाता है। विश्व ब्रेल दिवस चार जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन के स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। फ्रांस में चार जनवरी 1809 को जन्मे लुई ब्रेल को ब्रेल लिपि के आविष्कार का श्रेय प्राप्त है। यह लिपि ²ष्टि-बाधित लोगों को पढ़ने के साथ लिखने में भी मदद करती है।


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