वैदिक रीति-रिवाज से परिणय बंधन में बंधे भगवान श्रीरंगनाथ व गोदाम्माजी
रंगजी मंदिर में संपन्न हुआ विवाह समारोह, देश के कोने-कोने से आए भक्तगण
वृंदावन, जासं। दक्षिण भारतीय ब्राह्माणों के उच्चारित वेदमंत्रों की ऋचाओं के बीच भगवान रंगनाथ और श्रीगोदाम्मा का सोमवार को वैदिक रीति-रिवाज के साथ विवाह समारोह हुआ। विवाह के विलक्षण पलों का साक्षी बनने को देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु मौजूद रहे।
भगवान रंगनाथ और श्रीगोदाम्मा के विवाह की तैयारियां सुबह से ही शुरू हो गई थीं। परंपरा के अनुसार डोले में विराजमान करवाकर श्रीगोदाम्मा को यमुना दर्शन के लिए ले जाया गया। मंदिर की बारहद्वारी में विराजमान कराकर विवाह पूर्व की रस्में शुरू हुईं। वेदमंत्रों की ध्वनि और मंगल गायन के साथ शुरू हुए उत्सव में श्रद्धालुओं ने जमकर आनंद उठाया। दोपहर बाद भगवान रंगनाथ गरुण पर विराजमान होकर निज मंदिर से बरात लेकर निकले और बारहद्वारी पहुंचे।
यहां श्रीगोदाम्मा के पिता विष्णुचित्त सूरी ने भगवान रंगनाथ का स्वागत किया और पान-सुपारी व वस्त्र चांदी की थैली में रखकर भेंट किए। इसके बाद वेदमंत्रों की अनुगूंज के बीच विवाह की रस्म सप्तपदी शुरू हुईं, जो ठाकुरजी के अर्चकों के दो पक्षों के बीच दर्शाया गया। सप्तपदी में ठाकुरजी के दोनों पक्षों की ओर से अर्चक हल्दी से रंगे नारियल के साथ खेले, जिस प्रकार सात फेरे लिए जाते हैं। सप्तपदी के जरिए भगवान रंगनाथ सात वचन श्रीगोदाम्मा से लिए और मंगलसूत्र पहनाकर श्रीगोदाम्मा का परिणय स्वीकार किया। इसके बाद भगवान रंगनाथ ने श्रीगोदाम्मा के साथ शीश महल में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। पुष्करणी में किया स्नान
ठाकुरजी ने मंदिर की पुष्करणी में स्नान कर विवाह समारोह संपन्न किया। रामानुज संप्रदाय आचार्य नरेश नारायण ने कहा कि सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यमुना में बढ़ते प्रदूषण के चलते वृंदावन और ब्रज की प्राचीन परंपराएं टूट रही हैं। यमुना के जल्द शुद्धिकरण के प्रयास तेज होने चाहिए, ताकि परंपराएं अनवरत रूप से जारी रह सकें और आने वाली पीढ़ी इनका दर्शन कर सके।