मर्यादा व संबंधों की व्याख्या करती है रामकथा: मोरारी बापू
रमरणरेती आश्रम में चल रही कथा में बोले भगवान को नहीं भाता भक्त का अहंकार
संस, महावन (मथुरा) : महावन रमणरेती आश्रम में चल रही रामकथा के छठे दिन मंगलवार को कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि मर्यादा व संबंधों व्याख्या रामकथा करती है। इसका श्रवण करने से मनुष्य के जन्म-जन्मातरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। रामकथा में हरिनाम कीर्तन न हो, तो ऐसा मानों जैसे छप्पन भोग में तुलसी दल की अनुपस्थिति। तुलसी दल के बिना छप्पन भोग अधूरा माना जाता है।
उन्होंने कहा कि भक्त की सर्वाधिक क्षति अहंकार से होती है, भगवान को भक्त का अहंकार कभी नहीं भाता है। वे किसी न किसी प्रकार यथाशीघ्र उसे इस अहंकार से मुक्त अवश्य कर देते हैं। नारद मोह का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार नारद जी को यह भ्रम हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया है। वे सभी लोकों में अपनी इस विजय का ढिढोरा पीटते फिरे। यहां तक कि देवलोक जाकर देवराज इंद्र को और कैलाश पर्वत जाकर महादेव को भी उन्होंने बड़े गर्व के साथ अपनी इस सफलता की जानकारी दी। सारी परिस्थिति को भांपकर भगवान शिव ने उन्हें रोका कि भूलकर भी वे विष्णु भगवान को यह बात न बताएं। पर नारद जी का मन नहीं माना और वे विष्णु भगवान के पास भी अपने इस अहंकार का प्रदर्शन कर बैठे। विष्णु भगवान ने तत्काल एक परीक्षा लेकर उनके इस अहंकार का नाश कर दिया। मोरारी बापू ने स्पष्ट किया कि ज्ञान से प्रेम उत्पन्न होता है। देशप्रेम के संबंध में भी यही सच है। हम जितनी अधिक से अधिक यात्राएं करेंगे, अपने देश को जानेंगे, उतनी ही आपसी एकता बढ़ेगी तथा देशप्रेम बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि भगवान शंकर, प्रभु श्रीराम तथा भगवान कृष्ण ने भी देश के एक छोर से दूसरे छोर तक नौ-नौ यात्राएं करके देश को एकता के सूत्र में बांधा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि राम, कृष्ण तथा शिव मात्र नाम-रूप में अलग-अलग हैं पर वस्तुत: इनमें परस्पर कोई भेद नहीं है,जहां जिसकी रुचि तथा श्रद्धा हो वह अपनी इच्छानुसार इनमें से किसी की भी पूजा- आराधना कर सकता है।