न बचा 'कमोद' और न बचा 'वन'
मथुरा: ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का दूसरा पड़ाव स्थल है कमोद वन। कहने को
जागरण संवाददाता, मथुरा: ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का दूसरा पड़ाव स्थल है कमोद वन। कहने को तो यहां पड़ाव स्थल के लिए भूमि चिह्नित है, लेकिन उस पर ग्रामीणों ने अतिक्रमण कर लिया है। मजबूरन परिक्रमार्थी कपिल मुनि आश्रम, महाप्रभु की सातवीं बैठक, राधा-कृष्ण मंदिर, चैतन्य गौड़ीय मठ आदि स्थानों पर अपना पड़ाव डालते हैं।
कभी कमल के फूल से भरा रहने वाला कुंड भी वर्तमान में गंदगी से अटा पड़ा है। प्रमुख पड़ाव होने के कारण श्रद्धालु यहां आते तो जरूर हैं, लेकिन यहां स्नान व आचमन से कतराते हैं।
मधुवन से यात्रा अपने अगले पड़ाव कमोद वन के लिए निकली है। इसकी दूरी करीब छह किमी है। पहला एक किमी का रास्ता तो बेहद सुगम है, यात्रा मासूम नगर पहुंची है। यात्री आगे बढ़ रहे हैं तो कड़ी धूप और कच्चे मार्ग में बने गड्ढे और उनमें भरा पानी यात्रियों की गति को जरूर धीमा कर देते हैं। इससे आगे करीब दो किमी तक का मार्ग पूरी तरह से जर्जर है। रात्रि में ये परिक्रमार्थियों के लिए मुसीबत का कारण भी बनते हैं। मासूम नगर और तारसी के बीच पड़ने वाली टूटी पुलिया से होकर यात्री गुजरने को मजबूर है क्योंकि कोई दूसरा रास्ता ही नहीं हैं। जैसे-तैसे यात्रा गांव तारसी पहुंच गए हैं। यहां तालवन स्थित है। आचमन और गर्मी में स्नान का मन तो करता है, लेकिन करें तो क्या, पूरा कुंड जलकुंभियों से अटा पड़ा है। पास ही दाऊजी का मंदिर भी है। श्रद्धालु दर्शन कर ग्रामीणों की ओर से अपने खेतों में लगाए गए तंबुओं में सुस्ताने में व्यस्त हैं। कुछ पास ही बनी बगीची पर लगी चाय की दुकान पर चुस्की ले रहे हैं। पीने के लिए पानी की व्यवस्था भी ग्रामीणों ने ही कर रखी है। अभी कमोद वन करीब तीन किमी दूर है। करीब एक किमी चलने पर गांव नवीपुर के समीप सड़क पर ही यात्रियों की प्यास बुझाने के लिए हैंडपंप लगा है। टूटे रास्ते से होते हुए यात्री पड़ाव स्थल कमोद वन पहुंच रहे हैं। यहां कमोद बिहारी के दर्शन कर वह पानी पीकर प्यास बुझा रहे हैं हालांकि गांव में मीठा पानी नहीं है फिर भी ग्रामीण निजी संसाधनों से नि:स्वार्थ भाव सेवा में जुटे हैं। ये हैं प्रमुख समस्याएं:
-गांव में मीठे पानी का अभाव
-परिक्रमा का कच्चा और जर्जर मार्ग
-पड़ाव स्थल पर अतिक्रमण
-जन सुविधा के नाम पर न कोई शौचालय
इतिहास:
कहा जाता है कि पूर्व के समय यहां कमल खिलते थे, जिस कारण इसका नाम कमोद वन पड़ा है। मान्यता है कि कर्दम ऋषि के पुत्र कपिल मुनि ने 10 हजार 108 वर्ष तक यहीं पर तपस्या की। किदवंति है कि जब मां यशोदा और नंदबाबा ने सभी तीर्थों के दर्शन की इच्छा जताई तो भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं पर गंगा सागर का आह्वान किया था। इसी कारण इस कुंड को गंगा सागर के नाम से भी जाना जाता है।
वर्जन--
योगी सरकार प्रदेश को शौचालय मुक्त कराने की बात कहती है जबकि महिलाओं के लिए पूरे परिक्रमा मार्ग में कहीं भी शौचालय नहीं है। सभी कुंड व यमुना के घाटों पर गंदगी व्याप्त है। यहां स्नान तो दूर आचमन करने का भी मन नहीं करता।
स्नेहा, श्रद्धालु, गुजरात ब्रज को तीर्थ स्थल भले ही घोषित किया जा चुका है लेकिन यहां की सांसद, विधायक और मुख्यमंत्री ने यात्रा मार्गों के लिए कोई भी विकास कार्य नहीं कराया। यात्रा का पूरा मार्ग खराब है, जगह-जगह गड्ढे हैं। पीने को मीठा पानी नहीं है।
समीर, श्रद्धालु, अहमदाबाद पास ही में ग्राम पंचायत की ओर से पड़ाव स्थल के लिए भूमि पड़ी है। ग्राम प्रधान ने कई बार इस भूमि से अतिक्रमण को हटवाने के लिए पत्र दिए लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। मजबूरन यात्री यहां के मंदिरों पर ही डेरा डाल लेते हैं।
विष्णु, मुखिया कमोद कुंड की दीवार वर्षों से टूटी पड़ी है। कुंड की कभी भी शासन-प्रशासन द्वारा सफाई नहीं कराई गई। मजबूरन ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर स्वयं अपने खर्चे से इसकी सफाई कराते है। यात्रियों के ठहरने के लिए कोई भी उचित प्रबंध नहीं हैं।
बाबूलाल, ग्रामीण