राधा रानी के श्रृंगार पर सुध बुध खोए कान्हा
सूफी-कथक नृत्यागना मंजरी चतुर्वेदी ने आराध्य की सेवा में समर्पित किए भाव पुष्प मुरली की तान पर बहकीं राधा रानी तो कभी विरह की अग्नि में दहकीं
मथुरा, जागरण संवाददाता। जो अपने रूप-श्रृंगार से सबको मोहित करते हैं, उनके समक्ष राधा रानी जब साज-श्रृंगार संग भावामृत में डूबी नृत्य-उल्लास में दरशीं तो वह अपलक रह गए। देश की एकमात्र सूफी-कथक नृत्यागना मंजरी चतुर्वेदी ने राधा रमण मंदिर के चौक पर जब आत्मा को आत्मा से जोड़ने वाले सूफी-कथक नृत्य के फ्यूजन से उत्पन्न अलौकिक प्रेम और भक्ति का रोम-रोम पुलकाने वाला नृत्य प्रस्तुत किया तो लगा, मानो हम साढ़े पाच हजार वर्ष पूर्व के वृंदावन की कुंज गलियों में विचरते 'राधा रास' के साक्षात दर्शन कर रहे हों।
राधा रानी के अद्भुत श्रृंगार का कल्पना चित्र हवा के झोंको से झूलती डालियों सरीखे अंग संचालन से अवतरित हो रहा था। राग ललित में बहती स्वर सरिता में भीगकर नृत्य महज नृत्य न रहकर संपूर्ण दृश्य बन गया। राधा रास की कल्पना में सिर्फ श्रृंगार ही नहीं, विरह और चेतना के दृश्य भी साकार हुए। खूबी यह कि चित्र आखों में नहीं, सीधे आत्मा में उतरते जा रहे थे। मुरली की तान सुनते ही राधा की आत्मा अपने परम प्रिय परमात्मा से मिलन का नृत्य करने लगी और जब साक्षात मिलन की बेला आई तो प्रेमी भाव हंसी ठिठोली संग छेड़ और मनुहार में परिवर्तित हो गया। नवाब रामपुर की क्लासिकल कंपोजिंग - 'हटो जाओ कन्हाई, छाड़ौ कलाई' ने साक्षी दर्शकों को सीधे लीला स्थल पहुंचा दिया और जब 'नहीं आये घनश्याम, घिर आई बदरिया' में विरह वेदना का दृश्य उपस्थित हुए तो हृदय कुम्हलाने लगा।
देश-विदेश के प्रसिद्ध स्मारकों, मंचों पर लगभग चार सौ से अधिक प्रस्तुतिया दे चुकीं मंजरी चतुर्वेदी के लिए यह पहला अवसर था, जब वह किसी मंदिर के प्रागण में अपने आराध्य के समक्ष नृत्य सेविका की भाति आराधना में लीन थीं। राधारमण जू मंदिर प्रागण की ऊर्जा से वह स्वयं को भी उर्जित महसूस कर रही थीं। कहा भी-यहा नृत्य साधना से नहीं बल्कि मंदिर प्रागण में संचित ऊर्जा से स्वयं झरने लगा।
अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप