अब जापान की तर्ज पर मथुरा में बढ़ाई जाएगी हरियाली
मियावाकी पद्धति के आधार पर होगा पौधारोपणतीन तरह के पौधों की पट्टिका की जाएंगी तैयार
चंद्रशेखर दीक्षित,मथुरा: हर वर्ष लाखों की संख्या में पौधारोपण के बाद भी हरियाली का क्षेत्रफल घट रहा है। देहरादून के वैज्ञानिकों की सर्वे रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई है। इसलिए पौधारोपण का तरीका बदला जा रहा है। अब जापान की मियावाकी पद्धति के आधार पर पौधारोपण किया जाएगा। वर्ष 2022-23 में करीब 33 लाख पौधों का जिले में रोपण किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है।
मथुरा में हरियाली का कटान हो रहा है। ऐसे में अधिक से अधिक पौधा लगाना भी वन विभाग के लिए एक चुनौती है। पौधारोपण के लिए जगह की कमी है। साथ ही, पानी खारा होने से पौधे आसानी से पनप भी नहीं पाते हैं। मियावाकी पद्धति में पौधे एक-दूसरे को सहअस्तित्व के तौर पर विकसित करते हैं। पौधारोपण के बाद बायो फेंसिग की जाएगी, जिस पर होने वाला खर्चा मनरेगा के तहत किया जाएगा। ये है मियावाकी पद्धति
जापान के वनस्पति विज्ञानी अकीरो मियावाकी ने करीब 40 साल पहले इस पद्धति को जापान में विकसित किया था। इस पद्धति में क्षेत्र विशेष की मिंट्टी के अनुकूल पौधों का ख्याल रखकर उसी समूह के बड़े, मध्यम और छोटे पौधों को एक साथ एक विशेष क्रम में लगाया जाता है। सबसे छोटे पौधे को बीच में लगाया जाता है। इससे तीन से चार साल में ही घना जंगल तैयार हो जाता है। इस तरह कम जगह में ही अधिक संख्या में पौधे पेड़ बनकर तैयार हो जाते हैं। सामान्य भाषा में कहें तो मियावाकी पद्धति में पौधारोपण संयुक्त परिवार की तरह है। यह है बायो-फेंसिग
बायो-फेंसिग पौधों या झाड़ियों की पतली या संकरी पट्टीदार लाइन होती है, जो जंगली जानवरों के साथ-साथ तेज हवा आदि से रक्षा करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है। यह लकड़ी, पत्थर और तारों की फेंसिग से सस्ती और ज्यादा उपयोगी है। शासन की मंशा आगामी वर्ष में मियावाकी पद्धति से पौधारोपण कराने की है। इसको लेकर जल्द ही बैठक होगी। इसमें यह निर्धारित किया जाएगा कि पहली वर्ष में कितने पौधे इस पद्धति के आधार पर लगाए जाने हैं। कितना पौधारोपण पूर्व की तरह होना है। इसको लेकर अभी दिशा निर्देश मिलना बाकी है।
- रजनीकांत मित्तल, डीएफओ यह बताती है सर्वे रिपोर्ट:
वर्ष 2019 में देहरादून की भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) ने सैटेलाइट से सर्वे किया था। वर्ष 2020 में यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इसके मुताबिक जिले में वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2019 में 2.96 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र घट गया। मथुरा जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 3340 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 57.04 वर्ग किलोमीटर में वन्य क्षेत्र है। पक्षी विशेषज्ञ डा. केपी सिंह ने बताया कि एफएसआइ हर दो वर्ष में सैटेलाइट के माध्यम से सर्वे करती है। वर्ष 2021 की रिपोर्ट भी आने वाली है।