दो और बंदरों की गई जान, कागजों में 'कैद' हिफाजत के इंतजाम
अफसर सिर्फ पत्र भेजकर ही कर रहे कर्तव्य की इतिश्री
वृंदावन, जासं। गोविद बाग इलाके में दो महीने से लगातार चला आ रहा बंदरों की मौत के मामले को लेकर जिला प्रशासन खामोश हैं। नगर निगम और वन विभाग के बीच पत्र-पत्र का खेल तो खेला जा रहा है, लेकिन बंदरों के जीवन की हिफाजत के लिए कोई काम धरातल पर अभी तक नहीं किया गया है। शनिवार को भी इसी इलाके में एक बंदर का कंकाल मिला तो दूसरा मरा पाया गया।
कभी जंगलों में कंद मूल फल खाकर पेट भरने वाले बंदरों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो गए। जंगल से बंदर आबादी के बीच आ गए। इनकी संख्या इतनी बढ़ गई कि बंदरों को दाना खिलाने वाला ही लोगों ने इनको उपद्रवी बंदर करार दे दिया। सालों से लोग बंदरों से छुटकारा दिलाने की मांग करते चले आ रहे हैं, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया। अब, बंदरों की लगातार मौत हो रही है। एक सैकड़ा से अधिक बंदर मार चुके हैं। दो-तीन बंदरों का पोस्टमार्टम भी कराया गया। रिपोर्ट में हीट स्ट्रोक और भूख बताई गई, लेकिन हीट स्ट्रोक और भूख प्यास से बचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। नगर निगम ने वन विभाग से बंदरों के लिए प्राकृतिक वास स्थल उपलब्ध कराए जाने की मांग की है। वन विभाग की फाइल कभी वन संरक्षक तो कभी राष्ट्रीय चंबल पशु विहार के कार्यालय से लेकर वन विभाग के मुख्यालय तक दौड़ रही है। निर्णय कोई अधिकारी अभी तक इस पर नहीं ले सका है। इधर, बंदर मर रहे हैं। शनिवार सुबह गोविद बाग एक बंदर का कंकाल और उससे कुछ ही दूरी पर मादा बंदर मृत पाई गई। क्षेत्रीय लोगों ने बंदरों की मौत पर बतौर दिखावा आक्रोश तो व्यक्त किया, लेकिन उसका कोई प्रभाव प्रशासन पर नहीं पड़ा। बंदर सफारी की मांग: बंदर सफारी की मांग तो बहुत पहले से उठ रही है। सांसद हेमामालिनी ने भी अपने पहले कार्यकाल में बंदर सफारी बनवाने की मांग की थी। अब उस घोषणा को पूरा करने की मांग सामाजिक कार्यकर्ता दीपक पाराशर कर रहे हैं, पर सवाल ये है कि तब तक अनगिनत बंदर क्या इसी तरह मरते रहेंगे।