उपभोक्ता को पता नहीं, मोबाइल बैंक में खुला खाता
जागरण संवाददाता, मथुरा: मोबाइल कंपनियां कुछ साल पहले तक वैल्यू एडेड सर्विस के नाम पर मनचाह
जागरण संवाददाता, मथुरा: मोबाइल कंपनियां कुछ साल पहले तक वैल्यू एडेड सर्विस के नाम पर मनचाहा लूट कर रही थी। ट्राई ने इस पर सख्ती से रोक लगाई तो अब मोबाइल बैंक के नाम पर उपभोक्ताओं के पैसे गुपचुप तरीके से अपनी बैंक में जमा कर रही हैं। मोबाइल नंबर आधार कार्ड से ¨लक कराने के बाद इस तरह की शिकायतें सामने आने लगी हैं।
राधा नगर निवासी केके भाटिया वरिष्ठ नागरिक हैं। मोबाइल पर लगातार एसएमएस आने के बाद दो माह पहले उन्होंने अपना मोबाइल नंबर अपने आधार कार्ड से ¨लक करा दिया। इसके लिए कृष्णा नगर स्थित ही राज बुक की दुकान पर जाकर उन्होंने बायोमैट्रिक मशीन में थम्ब इंप्रेशन दिया। यहां दो-तीन कालम में टिक लगाने के बाद उनके मोबाइल ¨लक होने का मैसेज आ गया। वह एयर टेल कंपनी के पुराने उपभोक्ता हैं। इसी दौरान उन्होंने अपना टू जी सिम फोर जी में कन्वर्ट करा लिया।
उनके अनुसार इसी महीने उन्होंने एलपीजी सिलेंडर मंगाया, जिसकी सब्सिडी काफी दिनों तक उनके पंजाब नेशनल बैंक खाते में ट्रांसफर नहीं हुई, जबकि उनकी उम्र के कई लोग कुछ महीनों से शिकायत कर रहे थे कि उनकी सब्सिडी भी नहीं आ रही है। वह बैंक शाखा गए और जानकारी की तो बैंक कर्मचारियों ने सब्सिडी नहीं आने की जानकारी दी। लेकिन उन्होंने यह जानकारी जरूर दी कि यदि मोबाइल नंबर आधार से ¨लक है तो मोबाइल कंपनी से पता कर लें। वह कृष्णा नगर में ही स्थित कंपनी के दफ्तर पहुंचे तो जानकारी हुई कि एलपीजी सब्सिडी की राशि 226 रुपये उनके मोबाइल बैंक में पड़े हुए हैं।
उनका आरोप है कि उन्होंने न तो एयर टेल कंपनी की मोबाइल कंपनी का एप डाउनलोड किया है और न ही रकम ट्रांसफर करने की अनुमति दी है, फिर ऐसा कैसे हो गया। उन्होंने इसकी शिकायत कंपनी समेत ट्राई में भी की है और आरोप लगाया है कि इस तरह कभी बड़ी रकम भी उनके बैंक खाते की जगह मोबाइल बैंक में जमा हो सकती है और उन्हें इसका पता भी नहीं चलेगा।
इनसेट
हो क्या रहा है?
साइबर एक्सपर्टस की मानें तो वे मोबाइल कंपनियां जो अपना बैंक ले आई हैं, उनका खाता खोलने के लिए कुछ खास औपचारिकता नहीं करनी पड़ती है। कंपनियां मोबाइल नंबर पर ¨लक हुए उनके आधार से उनकी सभी जानकारी ले रही हैं और उनका खाता स्वयं ही अपने मोबाइल बैंक में क्रियेट कर रही हैं। उनकी रकम फिर बैंक खाते के बजाय मोबाइल बैंक खाते में ट्रांसफर होने लगती है। साइबर एक्सपर्ट नितीश माटा का कहना है कि यह अपराध है और उपभोक्ता की जानकारी में लाए बिना यह करना ठीक नहीं है। यदि किसी उपभोक्ता को अपने मोबाइल बैंक खाते के बारे में जानकारी नहीं है तो वह इसका उपयोग नहीं करेगा और छह माह अथवा साल भर बाद उसकी जमा रकम लैब्स होकर आटोमेटिकली मोबाइल कंपनी के मिसलेनियस खाते में चली जाएगी।
हालांकि यह सीधे-सीधे धारा 420 का मामला नहीं बनता, क्योंकि रकम एक खाते से दूसरे खाते में जमा कराई जा रही है, लेकिन यह नैतिक रूप से गलत है और ऐसे मामलों में उपभोक्ताओं को तत्काल प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए। बिना अनुमति किसी खाते से कोई कंपनी कैसे ट्रांसफर कर सकता है।
सार्थक चतुर्वेदी
अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट