मथुरा का 108 करोड़ रुपये का एनपीए
8,153 खाते हो चुके हैं खराब
गगन राव पाटिल, जागरण संवाददाता, मथुरा: देश भर की बैंकों के लिए बढ़ता हुआ नॉन परफॉर¨मग एसेट्स (एनपीए) नासूर बन चुका है। मथुरा भी इस दर्द से कराह रहा है। जिले में 108 करोड़ रुपये से भी अधिक की रकम डूबी हुई है। सबसे ज्यादा राशि एग्रीकल्चर सेक्टर में फंसी है। इन सबके बावजूद प्रयास नाकाफी हैं।
लगातार बढ़ता हुआ एनपीए राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे प्रकरण ने इसे और हवा देने का काम किया है। देश की अरबों रुपये की रकम फंसी हुई है, जो अर्थव्यवस्था के काम नहीं आ पा रही है। जिले में भी स्थिति ठीक नहीं है। लीड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक जिले में करीब 32 बैंकों की 281 शाखाएं हैं। इन बैंकों के आठ हजार 153 खाते खराब हो चुके हैं। इनमें एक अरब आठ करोड़ रुपये की रकम एनपीए हो चुकी है। सबसे ज्यादा 60 फीसद रकम कृषि क्षेत्र में डूबी हुई है। इसके बाद सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) का नंबर आता है। इस सेक्टर में 20 फीसद का एनपीए है। बाकि के 20 फीसद में एजुकेशन, हाउ¨सग, निर्यात जैसे क्षेत्र आते हैं।
सबसे ज्यादा एनपीए एसबीआइ का: इस कड़ी में सबसे अव्वल नंबर एसबीआइ का आता है। बैंक की कुल 45 शाखाएं हैं। इनमें अकेले 50 करोड़ रुपये का एनपीए है। बाकि की रकम में अन्य बैंक सिमट जाती हैं।
ये है एडवांस और डिपॉजिट की स्थिति: बैंकों ने वित्त वर्ष 2017-18 में 2,895 करोड़ रुपये का लोन दिया था। इसमें सबसे अधिक कृषि क्षेत्र में 1653 करोड़, एमएसएमई में 380 करोड़, 2313 करोड़ रुपये अन्य सेक्टर्स में। वहीं, 17-18 वित्तीय वर्ष में ही 13,524 करोड़ का डिपॉजिट भी आया है।
ये है बैंक के पास पॉवर: बैंक अधिकारियों के मुताबिक एनपीए वसूल करने के लिए बैंकों के पास सरफेसी एक्ट की पॉवर होती है। मगर, यह कानून उन्हीं पर लागू होता है, जिनकी प्रॉपर्टी मॉर्गेज होती हैं। जबकि बिना प्रॉपर्टी वाले मामलों में सरकार की ओर से रिकवरी सर्टीफिकेट जारी होता है। इसमें समय लग जाता है।
बकाएदारों के यहां शांति प्रदर्शन: कई बैंक ऐसी हैं जो अपनी तरह से एनपीए वसूलने में लगी हैं। इसमें पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारी व कर्मचारी विभिन्न जिलों में अभियान चला रहे हैं। जिसके तहत बकाएदारों के घर और प्रतिष्ठान पर तख्ती बैनर लेकर शांति प्रदर्शन किया जाता है।
लोक अदालत से उम्मीद: बैंकों को शनिवार को लगने वाली लोक अदालत से उम्मीदें बंधी हुई हैं। यह बकाएदार और बैंक के बीच सेटलमेंट कराने का काम करती है। इस माध्यम से कुछ फीसद रकम की वसूली हो जाती है।
एनपीए के संबंध में लगातार बकाएदारों को जागरूक किया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि रकम न चुकाने से उनकी साख खराब हो सकती है। इससे खातेदार का सिबिल भी प्रभावित होता है।
- अनिल गुप्ता, अग्रणी जिला प्रबंधक, लीड बैंक