बलदाऊ के अंगना में मिले रंग में रंग, मचयौ प्रेम कौ हुरंगा..
सतरंगी छटा के नयनाभिराम दृश्य के साक्षी बने हजारों लोग गोपी स्वरूप हुरियारिनों ने हुरियारों के फाड़े कपड़े पोतना से बरसाया रंग
बलदेव (मथुरा), जासं। बलदाऊ के अंगना में रंग में रंग मिल गए। प्रेम का हुरंगा हुआ। गोपी स्वरूप हुरियारिनों ने गोप स्वरूप हुरियारों के कपड़े फाड़ लिए। उनका पोतना (कोड़ा) बनाया और हुरियारों के बदन पर रंग में भिगो कर ताबड़तोड़ मारे। करीब दो घंटे बलदाऊ मंदिर में फूल, टेसू के रंग और गुलाल के इस नयनाभिराम दृश्य के हजारों देसी-विदेशी श्रद्धालु साक्षी बने।
शुक्रवार को मंदिर के पट खुलते ही बलदाऊजी ने अपने भैया श्रीकृष्ण को होली खेलने का न्यौता दिया। राजभोग के दर्शन के बाद दोनों भाइयों के प्रतीक स्वरूप दो झंडों को लेकर ठाकुरजी की आज्ञा लेकर मंदिर परिसर में आए। सेवायत पांडेय समाज की वधु गोपी स्वरूप और लोग ग्वाल बाल स्वरूप में मंदिर प्रांगण में एकत्र हुए। महारास हुआ। पांडेय समाज के लोग झंडे लेकर दाऊजी और रेवती मैया के मंदिर की परिक्रमा करते रहे और गोपियां उनके कपड़े फाड़ कर पोतना बना कर उनके ऊपर बरसाती रहीं। मंदिर की मुंडेर से टेसू के रंग, गुलाल, अबीर और फूलों की वर्षा हो रही थी। इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर पहली बार यहां आए लोग इसे होली समझ रहे थे, लेकिन कुछ पल बाद ही वे समझ गए कि होली नहीं हुरंगा है ये। चर-चर, तड़-तड़ से गुंजायमान रहा मंदिर:
मंदिर में कपड़े फाड़ने की चर-चर और उसके बाद हुरियारों पर पड़ते कोड़ों से तड़-तड़ की आवाज गूंज रही थीं और रसिया गायन भी चल रहा था। कोड़ों की मार के साथ हुरियारों का उत्साह, उल्लास और उमंग भी बढ़ती चली गई। नाचते गाते और तालाब बन चुके मंदिर परिसर में भरे टेसू रंग की बाल्टियां भर भर के गोपियों के ऊपर उड़ेलते थे। बीच में हुरियारे पड़ गए और दोनों तरफ से गोपियों ने उनको घेर लिया। हुरियारिन हुरियारों को उलाहना मारतीं और कहती कि मौकूं लाय दै लहंगा चुंदर कारी, मैं तो जाऊं दाऊजी के अंगना खेलवै कूं होरी, होरी तो तबही खेलू मेरी पौहंची में नग जड़वाय.. के संग प्रेम के रंग में रंगकर पोतना भी बरसाती रहीं। उम्र के सभी बंधन टूट गए। देवर और जेठ सब हुरंगा में मिल गए। हुरियारिनों ने खूब जोर लगाया, पर वे झंडा नहीं छीन सकीं। तभी हुरियारों ने उलाहना दिया हारी हुरियार, जीत चले ब्रज ग्वाल। हुरियारिनों का जोश बढ़ता है और वे पूरे उत्साह के साथ झंडे को छीन कर गाती है कि जीती गोरी, घर कूं चली सब ब्रज नारी। इसी के साथ ही होली का समापन हो जाता है। मंदिर के रिसीवर आरके पांडेय ने बताया कि सब जग होरी, ब्रज होरा। वही दृश्य यहां साकार होता है और हजारों लोग उसके साक्षी बनते हैं। ठाकुर जी का हुआ विशेष श्रृंगार: ठाकुर दाऊजी महराज और रेवती मैया को सेवायत मदनगोपाल पांडेय एडवोकेट ने विशेष श्रृंगार और आभूषण धारण कराएं। श्रद्धालुओं ने दर्शन कर होली का जमकर आनंद लिया। यूं मिलते लहंगा फरिया:
सेवायत आचार्य विष्णु महाराज बताते हैं कि ठाकुर दाऊजी और रैवती मैया का रोजाना नया श्रृंगार किया जाता है। श्रृंगार के सामान को साल भर तक सहेज कर रखा जाता है। बाद में इसको सेवायत पंडा समाज में वितरित कर दिया जाता है। इसी श्रृंगार को पंडा समाज की महिलाएं अपने पहनावा के लिए तैयार करती हैं।