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मैं तेरी पटरानी, पीर हरो मेरी मुरलीधर

16 फरवरी से संत समागम प्रदूषित जल से कराह रही यमुना कागजों में ही रह गए यमुना को निर्मल करने के दावे

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 06:55 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 06:55 AM (IST)
मैं तेरी पटरानी, पीर हरो मेरी मुरलीधर
मैं तेरी पटरानी, पीर हरो मेरी मुरलीधर

विनीत मिश्र, मथुरा: मैं यमुना हूं। अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी। मेरे प्रति अगाध आस्था ही है कि मुझे कालिदी, सूर्यपुत्री, यमभगिनी, भानुजा न जाने कितने नाम अपनों ने दिए। मैं वह यमुना हूं, जिसका आंचल अपनों के लिए हर समय फैला रहता है। बूंद-बूंद में श्रद्धालुओं की आस्था समाई है। दूर-दूर से भक्त मेरे आंचल में श्रद्धा की डुबकी लगाने आते हैं। मेरे ही कारण न जाने कितने परिवार पल रहे हैं, लेकिन क्या कभी मेरे बारे में सोचा है। आज मेरा जल आचमन लायक नहीं है। मैं अफसोस के सिवा कर भी क्या सकती हूं। बस, मेरी लहरें जल के निर्मल होने की राह तक रही हैं।

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ब्रज के कण-कण में जैसे कृष्ण और उनकी राधा बसी हैं, वैसे ही ब्रजवासियों से भी मेरा गहरा नाता है। मैं तो अपने मुरलीधर की हर लीला की साक्षात गवाह हूं। यकीन मानों मुझे भी ब्रज में उतना ही स्नेह मिलता है, जितना मेरे ठाकुर जी को। दूर-दूर से श्रद्धालु मेरे जल को स्पर्श करने आते हैं। लेकिन, मेरा हाल देख उनके मन में जो पीड़ा होती है, वह उनकी आंखों में पढ़ लेती हूं। सरकारों से लेकर अफसरों ने मेरे जल को निर्मल करने के लिए तमाम दावे किए, योजनाएं बनाईं, लेकिन उस पर उन्होंने अमल कितना किया, इसका अंदाजा तो आपको मेरे प्रदूषित हो चुके जल को देखकर ही लग जाएगा। जिन नालों को टेप करना था, वह आज भी मेरे आंचल में गिरते हैं। सच मानों, मैं कराह उठती हूं। मैं जिम्मेदार अफसरों से भी केवल यही कहती हूं कि आप थोड़ा जिम्मेदारी समझो, तो सब ठीक होगा। 16 फरवरी से वृंदावन में संत समागम होना है। 40 दिन तक दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु और संत स्नान करने आएंगे, लेकिन जरा सोचो, मेरी दशा देखकर क्या वह स्नान करने की हिम्मत जुटा पाएंगे। जिले का प्रशासनिक अमला संत समागम की तैयारियों में जुटा है, लेकिन मेरी तरफ कोई नहीं देख रहा। संतों की पीड़ा मैं समझ सकती हूं। मुझे लेकर वह व्यथित हैं। हों भी क्यों, उन्होंने अपनी आंखों से मुझे अविरल बहते देखा है, लेकिन अब वहीं आंखें मुझे इस हालत में देख रही हैं। मैं फिर उन जिम्मेदारों से कहती हूं कि बंद कमरे में योजनाएं नहीं बनतीं। योजनाएं बनाने और उन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए आपके धरातल पर काम करना पड़ेगा। केवल घाटों पर झाडू लगाने से कुछ नहीं होगा। जल को भी निर्मल करना होगा। मैंने फिर जिम्मेदारों से उम्मीदें बांधी हैं कि शायद मेरी पीड़ा वह हर लें। अंतहीन उम्मीदों के साथ सबको राधे-राधे।


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