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वादों की बहा दी गंगा, पर न कर सके मानसी को चंगा

नेता बदले लेकिन आचमन योग्य भी न हो सका जल 23 करोड़ रुपये की योजना बनाकर कराए गए कार्य

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 11:57 PM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 06:27 AM (IST)
वादों की बहा दी गंगा, पर न कर सके मानसी को चंगा
वादों की बहा दी गंगा, पर न कर सके मानसी को चंगा

गोवर्धन, जासं। शासन-प्रशासन में लंबे समय तक की पैरवी और इंतजार के बाद सौगात में मिली गोवर्धन की मानसी गंगा का रोजाना रंग बदलता जल और उठती दुर्गंध चीख-चीख कर जल के प्रदूषित होने की बात कह रही है। 23 करोड़ रुपये की रकम पानी की तरह बही, बावजूद जल को आचमन योग्य भी न बनाया जा सका।

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करीब एक दशक पूर्व हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय जब गोवर्धन आए, तो मानसीगंगा के हालात देख उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई। उन्होंने मथुरा जाकर जिला प्रशासन से इसकी रिपोर्ट मांगी। उच्च न्यायालय में विचाराधीन यमुना प्रदूषण रिट याचिका गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी बनाम उप्र सरकार में उन्होंने आदेश किया कि मानसीगंगा के प्रदूषित जल एवं कीचड़-मिट्टी को बाहर निकालकर जल को स्वच्छ आचमन योग्य बनाया जाए। आदेश के अनुपालन में मानसीगंगा को झील का दर्जा प्रदान कर झील संरक्षण योजना के तहत केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा 23 करोड़ रुपये की योजना बनाकर कार्यदायी संस्था मानसीगंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई उप्र जल निगम मथुरा द्वारा कार्य कराए गए। ये हुए परियोजना में काम:

-गोवर्धन में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया। कस्बे में सीवर लाइन डाली गई जिससे नालियों का पानी मानसीगंगा के जल को प्रदूषित न करे।

-स्वच्छ पानी भरने के लिए तीन नलकूप लगवाए गए। पानी की शुद्धता के लिए मानसीगंगा में एरियेशन प्लांट भी लगाया गया।

-घाटों का निर्माण करने के साथ ही जिन स्थानों पर सीवर लाइन डाली गई, उन सड़कों का निर्माण भी शामिल था। हालांकि सभी सड़कें नहीं बनवाई गई।

इन सभी कार्यों के संचालन की जिम्मेदारी नगर पंचायत को सौंपी गई। -मानसीगंगा पर बनाई गई बुर्ज टूट चुकी हैं। दसविसा से बड़ा बाजार तक मानसीगंगा मार्ग आज तक क्षतिग्रस्त है। किस मुंह से नेता वोट मांगने आ रहे हैं।

मनोज लंबरदार -मानसी गंगा में भरा गया जल स्वच्छ होना था। मगर पानी कभी काला, तो कभी हरा रंग बदलता रहता है। वोट लेकर प्रत्याशी पांच साल बाद दिखाई देते हैं।

पंकज मुखिया -प्रश्न यह है कि क्या 23 करोड़ खर्च करने के बाद क्या ऐसे ही जल की उम्मीद की गई थी। राजनेताओं को धार्मिक भावनाओं का खयाल रखना चाहिए।

गिर्राज ठाकुर -सीवर डालने के बाद चकलेश्वर से मुखारविद मंदिर तक सड़क निर्माण हुआ। कुछ समय बाद ही सड़क बीच में धंस गई। जगह जगह गड्ढे हो गए हैं।

विपिन गौड़


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