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गठबंधन नेताओं के दिल मिले न कार्यकर्ताओं के मन

कुंवर नरेंद्र सिंह के साथ रालोद बसपा और सपा नेता नहीं दिखे चुनाव का केंद्रीयकरण रहा हावी चुनाव प्रबंधन हो ही नहीं पाया

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 May 2019 12:13 AM (IST)Updated: Sat, 25 May 2019 12:13 AM (IST)
गठबंधन नेताओं के दिल मिले न कार्यकर्ताओं के मन
गठबंधन नेताओं के दिल मिले न कार्यकर्ताओं के मन

मथुरा, जासं। लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बावजूद रालोद अकेले ही चुनाव लड़ा। नेताओं की आपसी ईष्र्या दूर नहीं हुई और कार्यकर्ताओं के दिल नहीं मिल सके। उन्हें संभालने और दिशा निर्देश देने वालों की भी कमी रही और चुनाव प्रबंधन तो दोयम रहा ही। रही-सही कसर रालोद प्रत्याशी की तरफ से चुनाव प्रचार के केंद्रीयकरण ने निकाल दी। ऐसे में सपा-बसपा का वोट ट्रांसफर कैसे हो पाता।

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लोकसभा चुनाव में तीनों दलों के नेता प्रत्याशी के साथ टिकट घोषणा के बाद कभी नहीं देखे गए। सबसे ज्यादा तो रालोद नेता बंटे हुए रहे। तमाम जाट और ठाकुर नेताओं ने तो जैसे कुंवर नरेंद्र सिंह से पुरानी अदावत निकालने का यह बेहतर मौका मान लिया था। छाता, गोवर्धन, बलदेव और मांट में रालोद नेता केवल उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को अपनी शक्ल दिखाने तक सीमित रहे। सपा नेता तो जातिगत आंकड़ेबाजी में ही जिताते रहे। इस दल में नेताओं के आपसी मनमुटाव इतने गहरे हैं कि एक गुट साथ रहा तो सभी विरोधी गुट उनसे दूर रहे। बसपा अपने कैडर तक ही सीमित रही।

जबकि भाजपा के पूरे कैडर ने आपसी रस्साकसी के बावजूद काम किया। रालोद में चुनाव कार्य का केंद्रीयकरण इस कदर हावी रहा कि जिला निर्वाचन से हर दिन लेने वाली अनुमतियां भी प्रत्याशी के परिवारीजन ही ले रहे थे। सो एक-एक करके बचे-खुचे नेता और कार्यकर्ता रूठते रहे और घर बैठते रहे। उनकी कमी चुनाव प्रचार से लेकर बूथ प्रबंधन तक बुरी तरह खलती रही और समझदार व समर्पित कार्यकर्ता इसी टीस के साथ मनमसोस कर रह गए।

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