गठबंधन के दिग्गजों को अपने ही घर में चुनौती
पिछले चुनाव अपने ही बूथों पर खाई थी मुंह की अपने बूथ की जीत तय करेगी राजनीति की ताकत
मथुरा, मनोज चौधरी। वक्त के साथ-साथ राजनीति का परिदृश्य बदला है। नेताओं ने भी दल बदल लिए हैं। गठबंधन में अभी वही पुराने चेहरे भी हैं, जो लोकसभा चुनाव 2014 में भी थे। उस समय उनको अपने ही घर में हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार उनके सामने अपना बूथ जीतने की बड़ी चुनौती होगी।
पिछला लोकसभा चुनाव रालोद और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था, जबकि भाजपा, बसपा और सपा ने अपने ही दम पर चुनाव लड़ा था। इस बार राजनीति की तस्वीर दूसरी उभरी है। कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं हैं, लेकिन रालोद, बसपा और सपा का गठबंधन है। गठबंधन में कई नेता ऐसे अभी हैं, जो अपनी-अपनी पार्टियों में बड़े पद पर हैं। उनके लिए इस बार चुनाव में अपना बूथ जीतने का टारगेट उनकी पार्टी मुखिया दे चुके हैं। लक्ष्य मिलते ही गठबंधन ने बूथवार मतों का आकलन करना शुरू कर दिया है। जीत का अंक छूने के लिए गठबंधन ने बूथ जीतने की रणनीति पर काम भी शुरू कर दिया है। दरअसल, इससे पार्टी मुखियाओं को अपने नेताओं की राजनीतिक ताकत का भी पता करना है। इसलिए पहले से ही कमियों को दूर करने के लिए कहा गया है। ये बदल चुके हैं पाला: रालोद से रिश्ता तोड़कर मुरारी लाल अग्रवाल, श्याम चतुर्वेदी और मेघ श्याम अब भाजपा में हैं, जबकि जगदीश नौहवार सपा छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं। चेतन मलिक भाजपा में शामिल हो गए थे, पर चुनाव की पहले वे रालोद में वापस आ गए। गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र से मेघश्याम ने रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि सपा ने प्रीतम सिंह पर दांव लगाया था। प्रीतम सिंह अभी सपा ही हैं।