मथुरा की कृष्ण जन्माष्टमी : शुभ घड़ी आई, कंस की कारा में जन्मे कन्हाई
भादो की अंधेरी रात 12 बजे फिर कन्हाई जन्मे। शंख, घडिय़ाल और करतल ध्वनि के बीच जन्मभूमि पर कनुआ का जन्मदिन मनाया गया।
मथुरा [योगेश जादौन]। आज से 5244 वर्ष पहले कंस की कैद में एक किरण चमकी और पूरे विश्व की चेतना पर छा गई। निविड़ अंधेरे में उस घटना की गवाह दो जोड़ी आंखें थीं। सोमवार को उसी घटना को देखने लाखों आंखें जुटीं। भादो की अंधेरी रात 12 बजे फिर कन्हाई जन्मे। शंख, घडिय़ाल और करतल ध्वनि के बीच जन्मभूमि पर कनुआ का जन्मदिन मनाया गया।
जहां कभी कंस का कारागार था आज भव्य मंदिर है। इसी के प्रांगण में कान्हा का जन्मदिन देखने भारी भीड़ जुटी। देश-विदेश से लोग आए हैं। राधे-राधे की जयकारे लग रहे हैं। देवकीनंदन की किलकारी सुनने को हर कोई उतावला है। जगमग रोशनी से प्रदीप्त विशाल प्रांगण और भागवत भवन में नंद के आनंद की गूंज उठी। रात 11 बजने के साथ ही जन्मभूमि ट्रस्ट के कपिल शर्मा महंत नृत्य गोपालदास को व्हीलचेयर पर लेकर भागवत भवन के गर्भगृह पहुंचे।
1008 कमल पुष्पों से युगल दरबार का पूजन किया गया। मध्य रात्रि ठीक 12 बजे कान्हा के चलित विग्रह को मोरछल आसन पर लाया गया। चांदी की गाय ने दुग्धाभिषेक किया। इस गाय के थनों से लगातार दुग्धधारा बह रही थी। इसके बाद विग्रह को चांदी के कमल दल में स्थापित किया गया।
महंत नृत्य गोपालदास और जन्मभूमि के मुख्य ट्रस्टी अनुराग डालमिया ने दुग्धाभिषेक किया। करीब 15 मिनट चले इस कार्यक्रम के बाद स्वर्णआभा बंगले में श्रंृगार आरती की गई। पूरा जन्मस्थान कान्हा के आगमन पर जयकारों से गूंज उठा। रात्रि 1.30 बजे भक्तों का रेला बाहर की ओर चला तो कान्हा ने भी गोकुल की राह पकड़ी।
राधारमण लालजू का दिन में मना जन्मोत्सव, बांकेबिहारी में मंगला आरती : वृंदावन के सप्त देवालयों में प्रमुख गौड़ीय संप्रदाय के राधारमण लालजू मंदिर में भगवान कृष्ण का जन्म विधि-विधान हुआ। ब्रज का यह अकेला मंदिर है, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। मंगलवार सुबह ठीक 9 बजे उनके श्रीविग्रह का पुष्पार्चन प्रारंभ हुआ। इसके बाद दूध, दही, घृत, शर्करा, बूरा, शहद व जड़ी-बूटियों से ठाकुरजी का करीब दो घंटे तक सेवायतों ने महाभिषेक किया।
खास बातें
-श्रीकृष्ण सेवा संस्थान के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल ने किया अभिषेक
-केशव को पहनाई गई रेशम, जरी से बनी पीले रंग की कमलाकृति पोशाक
-पीतांबर में जन्म लेने के कारण पीले रंग को प्रधानता
-1008 कमल पुष्पों से दी गई पुष्पांजलि
-11 मन दूध से किया गया अभिषेक, स्वर्ण आभा बंगले में हुए विराजमान
-पहली बार मोरछल आश्रम में चल विग्रह को अभिषेक के लिए लाया गया
बांकेबिहारी की मंगला आरती दर्शन को उमड़ी भीड़
कटीले नयन, सिर पर फेंटा, पीतांबर और हीरे-मोती- माणिक्य का श्रृंगार। स्वर्ण-रजत ङ्क्षसहासन पर विराजमान ठा. बांकेबिहारीजी की अर्चना को जैसे ही स्वर्ण-रजत से दमकती आरती को सेवायत ने उठाया ठा. बांकेबिहारी मंदिर में भक्तों के उल्लास का ठिकाना न रहा।
वर्ष में एक ही दिन होने वाली ठा. बांकेबिहारी मंदिर में मंगला आरती के दिव्य पल का दर्शन करने को जनमानस देर रात तक डटा रहा। मंदिर में भीड़ इतनी थी कि तिलभर भी हटने को जगह नहीं। हालात ये कि व्यवस्था संभालने में सुरक्षाकर्मी भी हिम्मत हार गए। बिहारीजी की झलक पाने में नाकाम भक्तों की आंखों से आंसू छलक उठे। मीलों दूर मंगला आरती की एक झलक पाने को रातभर तपस्या की।
सोमवार को तय समय पर रात्रि 1.45 बजे ठा. बांकेबिहारी के पट खुले तो दर्शन कर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। स्वर्ण-रजत की छटाओं से दमकता बांकेबिहारी मंदिर का जगमोहन भक्तों का मन मोह रहा था। आरती के बाद एक बार पर्दा डाल दिया गया। मगर, कुछ ही मिनटों पर फिर से ठा. बांकेबिहारीजी ने भक्तों को दर्शन दिए तो सुबह 5.30 बजे तक दर्शनों का सिलसिला चलता रहा। आरती के बाद मंदिर में पूरी रात भक्त राधे-राधे के जयकारे लगाते रहे।