Move to Jagran APP

सूर के मुरीद अमेरिका निवासी हॉली का मन बन गया ब्रजवासी

अमेरिकी निवासी प्रो. हैली सूरदास के दीवाने हैं। अपने जीवन के 45 साल वह सूर पदावलियों पर शोध में बीता चुके हैं। ब्रजभाषा इस प्रवाह में बोलते हैं कि लगता ही नहीं कि वह ब्रज से बाहर के हैं। प्रो. हैली ने सूर पर किसी भी ड्क्षहदीभाषी से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इन दिनों वह वृंदावन शोध संस्थान में सूर से जुड़ी पांडुलिपियां खंगाल रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 12:36 AM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 06:22 AM (IST)
सूर के मुरीद अमेरिका निवासी हॉली का मन बन गया ब्रजवासी
सूर के मुरीद अमेरिका निवासी हॉली का मन बन गया ब्रजवासी

विपिन पाराशर, वृंदावन: अमेरिकी निवासी प्रो. हॉली सूरदास के दीवाने हैं। अपने जीवन के 45 साल वह सूर पदावलियों पर शोध में बीता चुके हैं। ब्रजभाषा इस प्रवाह में बोलते हैं कि लगता ही नहीं कि वह ब्रज से बाहर के हैं। प्रो. हॉली ने सूर पर किसी भी हिदीभाषी से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इन दिनों वह वृंदावन शोध संस्थान में सूर से जुड़ी पांडुलिपियां खंगाल रहे हैं।

loksabha election banner

अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रो. जैक हॉली पिछले 45 साल से ब्रज आ रहे हैं। ब्रजभाषा साहित्य और संस्कृति का अध्ययन करते हुए सूर के पदों ने उनका ध्यान खींचा, फिर तो वह इस जादू से ऐसे बंधे कि सूर दीवाने हो गए। आज वह ब्रजभाषा धाराप्रवाह बोलते हैं। उन्होंने वृंदावन के प्रो. कृष्णचैतन्य भट्ट और आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी के निकट बैठकर ब्रजभाषा का अध्ययन किया।

प्रो. हॉली का सूरदास पर आधारित कार्य 'सूरदास पॉइट, सिगर, सैंट' के नाम से प्रकाशित है। उन्होंने सूरसागर की खोज में नेशनल लाइब्रेरी दिल्ली, भारत कला भवन बनारस के अलावा कानोडिया संग्रह के साथ लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी, हावर्ड विवि, कोलम्बिया विवि, सैंडियगो, क्लीरन, जर्मनी (कोनाजाइड), ज्यूरिक-स्विटजरलैंड, वाशिगटन स्थित सचित्र पांडुलिपियों को खंगाला। इसके बाद उनके काम पर शोध प्रकाशित किया।

प्रो. हॉली बताते हैं सूरसागर की प्राचीन पांडुलिपियों में मेवाड़ शैली के चित्र बहुत प्रसिद्ध हैं। इनका प्रसार भारत के साथ विदेश तक है। श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं के साथ सूर का चित्रण इन पांडुलिपियों की विशेषता है। - जैक हॉली का नया शोध 'भक्ति के तीन स्वर' -

हाल ही में जैक हॉली ने सूरदास, मीरा और कबीर पर शोध किया है। इसका प्रकाशन 'भक्ति के तीन स्वर' के नाम से हुआ। अपने इस शोध में उन्होंने सूर, कबीर और मीरा के माध्यम से भक्तिकाल की कई विविधताओं को प्रामाणिक रूप से उजागर किया है।

- ग्रंथों की जिज्ञासा खींच लाई शोध संस्थान -

वृंदावन शोध संस्थान के हस्तलिखित ग्रंथागार की शोध अध्येता प्रगति शर्मा बताती हैं पांडुलिपियों के वंश वृक्ष, पाठ भेद तथा पुरा ग्रंथों की तत्कालीन अन्य विविधताओं की जिज्ञासा में विदेशी विवि के प्रोफेसर, शोध छात्र एवं संस्कृति प्रेमी वर्षभर विभिन्न विषयों को लेकर संस्थान आते हैं। जिन्हें तत्कालीन अभिलेख, पांडुलिपि एवं अन्य शोध सामग्री संस्थान के द्वारा सुलभ करायी जाती हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.