होली के रंग में सखियों की अदा पर फिदा हुआ बरसाना
राधा की सखी का स्वरूप बन खेलतीं होली कई वर्षों से आ रहीं देश के कोने-कोने से
मथुरा, गगन राव पाटिल। बरसाना की होली को राधा-कृष्ण के बाद अगर कोई सही मायनों में पूरा करता है, तो वो हैं सखियां, उनका लटकना, मटकना और झटकना। अपनी इसी अदा पर पूरे बरसाना को फिदा कर देती हैं और अपना कायल बना देती है।
बात हो रही है उन स्वरूपों की जो राधा की सखियां बनकर इस महा महोत्सव को पूरा करती हैं। दे के विभिन्न कोनों से सिर्फ इसी परंपरा का निर्वहन करती है। यह उनकी राधा-कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति ही तो है जो दूरियों की परवाह नहीं करती। इस समय भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। उप्र के अलावा पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, झारखंड आदि राज्यों से हजारों की संख्या में आकर डेरा डाल देती हैं और बरसाना की गलियों में घूम-घूमकर द्वापर युग को जीवंत करती हैं। हालांकि यही इनका पेश नहीं है। कुछ तो विभिन्न कंपनियों में भी कार्यरत हैं। वहीं कुछ नाटक मंडलियों से भी जुड़ी हैं। रहन-सहन ऐसा कि कोई एक बार को देखता ही रह जाए। जब इन्हें देखा तो बात करने की जिज्ञसा होने लगे। पंजाब से आई चांद ने बताया कि वे पिछले 12-13 साल से लगातार आ रही हैं। यहां आना किसी सौभाग्य से कम नहीं है। बार बार राधा कृष्ण का प्रेम उन्हें खींच लाता है। कुछ ऐसा ही कहना तराना का भी, उनसे पहले उनके माता पति यहां आते थे। अब वे आ रही हैं।
मैं यहां आना कभी नहीं छोड़ता हूं, सखी का स्वरूप बनना मुझे काफी पसंद है। यहां आने के लिए कई दिन पहले से ही योजना बन जाती है।
दिलीप, दिल्ली पिछले 12-13 सालों से लगातार आ रही हूं, आगे भी आना जारी रहेगा, यहां आकर जो वास्तव में सखी का अहसास होता है वह कहीं नहीं होता।
तराना, चंडीगढ़ सामान्य दिनों में जहां भी रासलीला जैसे कार्यक्रम होते हैं, वहां प्रतिभाग करने को बुलाया जाता है। जबकि यहां आना सबसे शानदार अनुभव होता है।
चांद, लुधयिना लड्डूमार होली के एक दिन पहले ही यहां आगमन हो जाता है। यहां की गलियां में घूम घूमकर होली खेलने का मजा ही अलग है।
उत्कर्ष, नोएडा