गोकुल के पूतना कुंड में आज भी भरा 'विष'
छठी के दिन कान्हा को राक्षसनी यहीं आई थी दूध पिलाने
जागरण संवाददाता, मथुरा: गोकुल की तरफ 30-40 कदम रखते ही लाल पत्थर से बना एक स्थल कुरूप दिखाई देता है। यह वही स्थल है, जहां करीब पांच हजार दो सौ साल पहले पूतना नाम की रक्षसनी ने छठी के दिन कान्हा को दूध की जगह विष पिलाना चाहा था। यह पूतना कुंड के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 2014-15 में 50 लाख रुपये से पूतना कुंड का सुंदरीकरण किया गया था। करीब साढ़े तीन साल में ही यह फिर जर्जर हाल में है। सड़क किनारे लगे पर्यटन विभाग के साइन बोर्ड पर फेरे गए सफेद रंग के बीच साफ नजर आ रहा है कि यही पूतना कुंड है। कुंड के चारों तरफ लाल पत्थर की बैंच बनी हुई है। घूमने के लिए फुटपाथ बना है। विश्राम के लिए पत्थर की बारादरी बनी है। कभी ये कुंड विशाल था, लेकिन सुंदरीकरण के बाद यह दो-ढाई सौ वर्गगज में सिकुड़ गया है। पर्यटन विभाग ने सुंदरीकरण के बाद कुंड की तरफ ही नहीं देखा। इसमें भरा पानी विष सरीखा है। इसके किनारे और घाट पर विलायती बबूल उगने लगे हैं। श्रद्धालु दूर से ही देखकर पर्यटन विभाग और नगर पंचायत प्रशासन की हीलाहवाली को समझ जाते हैं। पर्यटन अधिकारी नेहा वर्मा ने बताया कि उन्होंने अभी कार्यभार लिया है। कुंड के रखरखाव का दायित्व किस संस्था पर है, यह अभी पता नहीं है।