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दान की बजाए बिजनेस का हिस्सा बनाएं सीएसआर को

जीएलए विवि में आयोजित ग्रामीण भारत से कॉरपोरेट संयोजन पर कार्यशाला, अतिथियों ने सीएसआर के खर्च को लेकर रखे बुनियादी सवाल

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 12:31 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 12:31 AM (IST)
दान की बजाए बिजनेस का हिस्सा बनाएं सीएसआर को
दान की बजाए बिजनेस का हिस्सा बनाएं सीएसआर को

मथुरा, जासं। कॉरपोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) यानी कॉरपोरेट संस्थाओं की कमाई का एक हिस्सा समाज पर किस तरह खर्च किए जाए इसे लेकर जीएलए में हुई कार्यशाला में कई बुनियादी सवाल उठाए गए। वक्ताओं ने कहा कि इसे दान की तरह खर्च नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसके तहत ऐसे काम हों जो संस्था की छवि को बना सके यानी वह बिजनेस का ही एक हिस्सा हों।

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जीएलए में सीएसआर कॉन्क्लेव कने¨क्टग रूरल इंडिया विषय पर हुई कार्यशाला में वक्ताओं ने प्रबंधन के छात्रों को भी सूत्र दिए। कहा कि प्रबंधन ही नहीं जीवन में सबसे जरूरी चीज है साफ लक्ष्य और ईमानदार सोच का। सीएसआर की राशि को जिस तरह से अभी खर्च किया जा रहा है उससे बहुत बेहतर परिणाम नहीं आ रहे हैं।

द्वि-दिवसीय आयोजन का शुभारंभ स्व. श्री गणेशी लाल अग्रवाल के चित्रपट पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन किया गया। कॉन्क्लेव में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. विंदेश्वर पाठक ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की।

मुख्य अतिथि पाठक ने सुलभ की सफलता की कहानी के माध्यम से बताया कि हम परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालें और अपने ज्ञान और तजुर्बे को दूसरों के साथ ताजा करें। दूसरों की पीड़ा, अनुभूति और बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है।

कुलपति प्रो. डीएस चौहान, प्रतिकुलपति एवं प्रबंधन संस्थान के निदेशक प्रो. आनंद मोहन अग्रवाल, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. अनूप कुमार गुप्ता, प्रो. प्रदीप मिश्रा, परीक्षा नियंत्रक प्रो. अतुल बंसल, कुलसचिव अशोक कुमार ¨सह तथा विश्वविद्यालय के समस्त विभागाध्यक्ष, कार्यक्रम संचालक, प्रोफेसरगण मौजूद रहे।

भगवान बौद्ध के सिद्धांतों को समझने की जरूरत है। हर एक को कुछ एक्स्ट्रा करना चाहिए। गणित के सूत्रों से हम सीख सकते हैं कि कैसे केवल बेहतर करने की सोच भर लेने से काम की कई गुना शुरूआत होती है। बस इस काम को जारी रखने की जरूरत है।

ऋषिकेश शरण, पूर्व डीजी, कस्टम एक्साइज विकास के नाम पर अंधाधुंध पैसे खर्च करने से कुछ नहीं होगा। जरूरत सोच बदलने की है। आज हर गांव में शौचालय, सड़कें बनाई गईं लेकिन उसके इस्तेमाल की हकीकत सबको पता है। इसलिए जरूरी है कि पहले बेहतर करने की सोच में सब भागीदार हों, यह रास्ता निकाला जाए।

प्रो. रंजन महापात्रा, चीफ एडिटर सीएसआर विजन एक अच्छा उत्पाद बनाना भी सीएसआर है। हम ग्राहक को हर तरह से संतुष्ट कर पाए तो समाज के विकास में हमारा समुचित योगदान होगा। सीएसआर गर्वनेंस बिजनेस इथिक्स और सस्टेनेबिलिटी आपस में जुड़े हुए हैं, जिसके लिए अच्छी ट्रे¨नग की जरूरत है।

प्रो. सीवी बख्शी, पूर्व निदेशक एमडीआइ सीएसआर की श्रेणी में ऐसी सुविधाएं जैसे पीने का साफ पानी, महिला सशक्तिकरण, सब सबके लिए शिक्षा और हुनर को निखारने की कोशिश आती है। इस दिशा में आइओसीएल ने कई कदम उठाए हैं।

सुनील कपूर, जनरल मैनेजर आइओएसीएल इन्होंने भी किया संबोधन

एनपीसी की एचआर जनरल मैनेजर डॉ. रिचा मिश्रा, स्कोप के एचआर हेड कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन पीके सिन्हा, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दुर्ग ¨सह चौहान, भेल के जनरल मैनेजर डॉ. बलवीर तलवार, टूरिस्ट ट्रस्ट इंडिया के शशिकांत पाराशर और निधि पाराशर, एनसीडीसी निदेशक जयकांत ¨सह, वरूण विद्यार्थी संस्थापक मानवोदय, पब्लिक रिलेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के डॉ. अजित पाठक, एएआइ की डीजीएम, सीएसआर नीतू जैन, बमरौली आगरा के ग्राम प्रधान जय किशन कटारा और कल्पना कटारा ने विचार व्यक्त किए।


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