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राह ताकते सूने घाट, बेबस कालिदी के भक्त

संस मथुरा कालिदी जिसे भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी कहा जाता है। भक्त इसे यमुना मैया के नाम से भी पुकारते हैं। कृष्ण की पटरानी कालिदी और उसके घाटों पर आज एक बार फिर संकट की काली छाया छाई हुई है। इससे पहले द्वापर युग में जब यमुना में कालिया नाग का वास था तो लोग उसके घाटों पर जाने से डरते थे और यमुना का विषैला होने से लोग उसके घाट या आसपास से गुजरने में भी कतराते थे। इससे घाटों पर सन्नाटा रहता था। वर्तमान में भी इन घाटों पर सन्नाटा पसरा है ऐसा प्रतीत होता है कि कलियुग में कालिया कोरोना का रूप धारण कर वापस आ गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 12:56 AM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 12:56 AM (IST)
राह ताकते सूने घाट, बेबस कालिदी के भक्त
राह ताकते सूने घाट, बेबस कालिदी के भक्त

हिमांशु हरदैनियां, मथुरा :

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वह द्वापर युग था, तब कालिया नाग के आतंक ने कान्हा की पटरानी कालिदी का उल्लास शांत कर दिया था। कालिया के डर से घाट सूने थे, तो यमुना तीरे लोगों में दहशत। करीब साढ़े पांच हजार साल बाद एक बार फिर कालिदी के घाटों पर सन्नाटा पसरा है। दूर-दूर तक न आचमन करने वाले दिख रहे हैं और न ही पूजन करने वाले। इस बार कालिया नाग नहीं कोरोना वायरस की दहशत ने यहां सन्नाटा कर दिया है। 66 दिन से यमुना मैया भी अपने भक्तों से नहीं मिल पाईं, तो भक्त भी यमुना के दर्शन नहीं कर पा रहे।

लॉकडाउन में फैक्ट्रियों की चिमनियां शांत हुईं, तो उससे निकलने वाला कचरा भी यमुना में नहीं गया। दशकों बाद ये पहला मौका है, जब जल स्वच्छ है और अविरल धारा मन को मोहने वाली है। लेकिन विडंबना यह है कि आज जब यमुना का पानी निर्मल हुआ, तो भक्त आचमन करने देहरी पर भी नहीं जा पा रहे हैं। यमुना घाट पर पूजन करने वाले पुरोहित आनंद बादाम छाप चौबे बताते हैं कि ब्रज मंडल में यमुना की धारा अ‌र्द्धचंद्राकार रूप में प्रवाहित होती हैं। यमुना का अपना अलग ही महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने यहां लीलाएं कीं। कान्हा ने द्वापर युग में कालिया नाग का मान-मर्दन कर यमुना और ब्रजवासी दोनों को ही अभयदान दिया। मान्यता है कि यमुना में स्नान व उसके जल के आचमन मात्र से ही सारे पापों का नाश हो जाता है। अकेले मथुरा में 24 तो वृंदावन में पांच घाट अस्तित्व में हैं। लेकिन कोरोना वायरस की दहशत में लॉकडाउन हुआ, तो इन घाटों पर भी सन्नाटा पसर गया। सूने घाट अपने भक्तों की राह देख रहे हैं। 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यमुना स्नान और पूजन करते थे, लेकिन इस बार श्रद्धालु यमुना घाट पर नजर नहीं आए। कालिदी और ब्रजवासी भी शायद अब कोरोना से निजात दिलाने वाले तारणहार के इंतजार में हैं। विश्राम घाट है खास

कान्हा की जन्मस्थली में यमुना के किनारे बने घाटों की संख्या 25 है। वैसे तो सभी घाटों का अपना महत्व है, लेकिन विश्राम घाट का विशेष महत्व है। इसके दोनों ओर 12-12 घाट बने हैं। मान्यता है कि कंस की अंत्येष्टि के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में स्नान कर यहीं विश्राम किया था और तभी से इसका नाम विश्राम घाट है। यहां स्नान करने से मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होती है और उसके पापों का भी नाश हो जाता है। यमुना के घाट, इन्हें तीर्थों के नाम से भी जानते हैं

-अविमुक्त - नवतीर्थ

-गुह्म - संयमन

-प्रयाम - धारापतन

-कनखल - नागतीर्थ

-तिदुक - घंटाभरणक

-सूर्य - ब्रह्मतीर्थ

-बटस्वामी - सोमतीर्थ

-ध्रुव -सरस्वती पतनतीर्थ

-बोधि - चक्रतीर्थ

-ऋषि - दशाश्वमेध तीर्थ

-मोक्ष - विघ्नराज तीर्थ

-कोटि - कोटि तीर्थ

बॉक्स ---

हर महीने यमुना जल की स्थिति

माह, बीओडी, सीओडी

मार्च यू/एस, 11.0, 60.0

मार्च डी/एस, 11.6, 64.0

अप्रैल यू/एस, 8.8, 32

अप्रैल डी/एस, 9.6, 36

मई यू/एस, 8.2, 32

मई डी/एस, 9.4, 44

(बीडीओ-बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड)

(सीओडी-कोलीफोमर्स ऑर्गेनाइज्म डिमांड)


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