गिरिराज श्रंगार में पांच दिन हर रोज नई घटा
दानघाटी मंदिर में पांच रंगों का विशेष श्रंगार, एकादशी से रक्षाबंधन तक चलेगा विशेष आयोजन
संवाद सूत्र, गोवर्धन: एकादशी से रक्षाबंधन तक पांच दिन गोवर्धन महाराज के श्रंगार के लिए घटाएं सजाई जाएंगी और प्रभु के श्रंगार में नित्य नए प्रयोग देखने को मिलेंगे। गिरिराजजी के साथ मंदिर परिसर भी एक ही रंग में रंगा होगा। रंग विशेष के पर्दे, पोशाक, जेवरात के साथ ठोड़ी पर सजा लाल रंग का हीरा प्रभु की झांकी को एकटक निहारने पर मजबूर करेगा। यह आयोजन 22 से 26 अगस्त तक चलेगा।
गिरिराजजी के अद्वितीय श्रंगार के लिए भाव के मोती पिरोकर उनकी झांकी को अद्भुत बनाने का प्रयास करेंगे। सेवायत रामेश्वर पुरोहित दानघाटी गिरिराज के लिए पांच दिन तक पांच अलग-अलग घटाओं की झांकी तैयार करने में मशगूल हैं। विशेष श्रंगार में पांच चु¨नदा हरा, पीला, लाल, सफेद और काला रंग का प्रयोग किया जाएगा। पहले दिन पीले रंग तो रक्षाबंधन के दिन हरे रंग की घटा के दर्शन होंगे।
सेवायत ने बताया कि जब हरे रंग के विशेष दर्शन होंगे तो इसमें गिरिराजजी हरे रंग की पोशाक धारण करेंगे। स्वर्ण मुकुट के साथ हरी पत्तियां और पुष्प हरियाली का एहसास कराएंगे। मस्तक पर सजा कस्तूरी तिलक और गालों पर चंदन भी हरे रंग का होगा। प्रभु के प्रसाद में हरे रंग की वस्तुओं को वरीयता दी जाएगी, यहां तक कि दूध को भी पिस्ता डालकर हरे रंग में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
श्रंगार में घटा अनुसार ही उसी रंग के जेवरात प्रयोग में लाए जाएंगे। पुष्प महल में भी खास रंग का प्रयोग होगा, मानो ब्रजभूमि एक ही रंग में रंग गई हो। अचल गिरिराज प्रभु को झूला झुलाने के लिए भक्तों ने भाव को तरजीह देते हुए दर्पण का झूला भी तैयार किया है। भव्य होता चला गया दानघाटी मंदिर:
मथुरा से 21 किमी की दूरी पर स्थित कान्हा की बाल लीलाओं की गवाह पर्वतराज गोवर्धन की धरा प्राकृतिक सौंदर्य और भक्ति की अनूठी मिशाल है। 1957 में दानघाटी मंदिर की नींव रखी गई तो रोशनी के लिए सिर्फ एक लालटेन लटकी रहती थी। धीरे-धीरे मंदिर विशाल स्वरूप में परिवर्तित होने लगा। करीब चार दशक पूर्व प्रभु पर चु¨नदा पोशाकें थीं। 1998 में प्रभु की मीनार पर स्वर्ण कलश और स्वर्ण ध्वज लगाया गया। 2003 में चांदी के बने दरवाजे पर नक्काशी लगाई गई। 2005 में 51 किलो चांदी का छत्र प्रभु पर चढ़ाया गया। 2013 में चांदी के ¨सहासन पर प्रभु विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देने लगे। अब उनका स्वर्ण आभूषण युक्त श्रंगार भी होने लगा है।