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सफेद छतरी में आईं प्रिया, स्वर्ण हिडोले में विराजे प्रियतम

हरियाली तीज पर बरसाना और वृंदावन में उमड़ा जनसैलाब स्वर्ण हिडोला में प्रिया-प्रियतम को कराया गया विराजमान

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 12:27 AM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 06:26 AM (IST)
सफेद छतरी में आईं प्रिया, स्वर्ण हिडोले में विराजे प्रियतम
सफेद छतरी में आईं प्रिया, स्वर्ण हिडोले में विराजे प्रियतम

जेएनएन, मथुरा: हरियाली तीज पर शनिवार को बृज में विहंगम नजारा था। सावन के माह में आसमां से इंद्रदेव पानी बरसा रहे थे, तो वहीं जमीं पर राधा-रानी और कृष्ण कन्हैया मानो नृत्य कर रहे थे। बरसाना में राधा-रानी के डोले को मंदिर के गर्भगृह से नीचे परिसर में बनी संगरमरमर की सफेद छतरी में लाया गया, तो उधर वृंदावन में बांकेबिहारी जी को स्वर्ण हिडोला में विराजमान कराया गया। बरसाना: झूलन चलो हिडोला बृषभान नंदनी को...! श्याम संग झूला झूल रही राधा, झूला रहे सब सखियन कुछ ऐसा ही भाव लाडि़ली जी मंदिर में देखने को मिला। जब बृषभान नंदनी अपने प्यारे नंदलाल के साथ हरे रंग की पोशाक धारण कर स्वर्ण हिडोले में विराजमान होकर अपने भक्तों पर कृपा का सागर बरसा रही थीं। लाड़िली जी मंदिर को हरे परिधानों से सजाया गया था। राधाकृष्ण की इस अद्भुत झांकी के दर्शन की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु आतुर थे।

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ब्रह्मांचल पर्वत पर छायी हरी छठा के बीच स्थित लाडि़ली जी मंदिर का मनोरम ²श्य अलग ही लग रहा था। सुबह से ही सुहाने मौसम का आनंद लेते हुए श्रद्धालुओं ने गहवरवन की परिक्रमा लगाई। सुबह आठ बजे मंदिर के सेवायतों द्वारा राधाकृष्ण के श्रीविग्रह को गर्भगृह से बाहर जगमोहन में स्थित सोने-चांदी से जड़ित प्राचीन स्वर्ण हिडोले में विराजमान कराया। बृषभान नदंनी की अनोखी झांकी के दर्शनों को श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सेवायतो द्वारा सतरंगी छप्पनभोग लगाया गया, तो वहीं श्रद्धालुओं द्वारा अपनी आराध्य राधारानी को घेवर व श्रृंगार भेंट किए। इस दौरान मंदिर परिसर में भजन संध्या हुई।

कस्बे के दानगढ़, विलासगढ़, राम मंदिर, मान मंदिर, रस मंदिर, गहवरवन, कुशल बिहारी जी मंदिर, श्यामाश्याम मंदिर, गोपाल जी समेत तमाम मंदिरों में ठाकुर जी के श्रीविग्रह को झूला-झुलाया गया। वहीं, अकबर कालीन बने प्राचीन पत्थर के हिडोले में भी झूला डाल कर राधाकृष्ण के स्वरूपों को झूलाया गया।

इधर, शाम करीब पांच बजे राधा-रानी का डोला धूमधाम से निकाला गया। डोले को मंदिर के गर्भग्रह से नीचे परिसर में बनी संगमरमर की सफेद छतरी में लाया गया। गोस्वामी समाज के युवक डोले को कंधों पर उठाकर राधा-रानी के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। गाजे बाजे के साथ राधारानी की शोभायात्रा सफेद छतरी में पहुंची। राधाकृष्ण के श्रीविग्रह को सफेद छतरी में विराजमान किया गया। सेवायतों द्वारा राधारानी को पुआ का भोग लगाकर प्रसाद वितरण किया। गोस्वामी सामाज द्वारा राधारानी के समीप सावन के मल्हारों के पदो की प्रस्तुति की गई। इसके बाद देर शाम को गोस्वामी सामाज की कुंवारी कन्या द्वारा राधा-रानी का आरती की गई। लगभग दो घंटे बाद डोला में बैठाकर राधाकृष्ण के श्रीविग्रह को वापस गर्भग्रह में ले जाया गया। वृंदावन: अद्भुत, आकर्षक स्वर्ण-रजत हिडोले में विराजमान ठा. बांकेबिहारी जी के अलभ्य दर्शन, सजल मेघ कांति लिए चमकते नुकीले नयन। हृदय को चीर देने वाले इन नयनों में गहराई और चमक ऐसी कि सागर भी समा जाये और आकाश भी। जो सामने आया, इनका हो गया, इनमें डूब गया। वक्षस्थल पर झूलते हुए पुष्पाहार, पीछे इकलाई में सिमटी हुई प्रियाजी। दोनों की अद्भुत जोड़ी को अपलक देखते निकट बैठे स्वामी हरिदास जी महाराज। भक्तों ने भी प्रेम और आस्था के इस समंदर में ठाकुरजी को झोटे देकर जमकर झुलाया।

हरियाली तीज की भोर से ही श्रद्धालुओं के कदम बांकेबिहारी मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। आराध्य की एक झलक पाने की लालसा भक्तों को मंदिर की ओर ले जा रही थी। पिछले सालों की अपेक्षा इस बार भीड़ भले ही कम थी। बावजूद इसके मंदिर के अंदर और बाजार का इलाका पूरी तरह भक्तों की संख्या से गुलजार था।

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रात में सुखसेज पर किया विश्राम:

दिनभर हिडोले में झोटे लेते हुए जब ठा. बांकेबिहारी थक गए, तो रात में आराध्य ने सुखसेज पर विश्राम किया। सिल्क के गद्दे और तकिया पर विराजे ठा. बांकेबिहारीजी के शरीर पर सेवायतों ने मालिश की। रात में ठाकुरजी की सुखसेज के समीप दर्पण, बीड़ा (पान), चांदी के बाक्स में चार लड्डू भी रखे गए। ताकि जरूरत पड़ने पर ठाकुरजी इनका इस्तेमाल कर सकें। बेरीवाला परिवार की महिलाओं ने सजाईं सखियां:

ठा. बांकेबिहारीजी के हिडोला सजाने में भक्त बेरीवाला परिवार की महिलाओं ने अपनी भागीदारी की। श्रद्धालु महिलाओं ने हिडोला के साथ खड़ी सखियों का श्रृंगार कर उन्हें संवारा। इस काम के लिए बेरीवाला परिवार की देशभर में रह रहीं महिलाएं साल में इस दिन मंदिर में सेवा देने के लिए विशेष तौर पर आती हैं।


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