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मौत को मात दे उठ खड़ा हुआ गजराज, तलवों पर किया लेमिनेशन

हाथी अस्पताल में चल रही उसके पैरों की सघन चिकित्सा, विशेषज्ञों की देखरेख में प्राकृतिक माहौल में हो रहा इलाज, नाखून में संक्रमण के मामले भी

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 12:27 AM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 12:27 AM (IST)
मौत को मात दे उठ खड़ा हुआ गजराज, तलवों पर किया लेमिनेशन
मौत को मात दे उठ खड़ा हुआ गजराज, तलवों पर किया लेमिनेशन

योगेश जादौन, मथुरा: गजराज, ये उस हाथी का नाम है, जो दो साल पहले तक महाराष्ट्र के सतारा जिले की महारानी गायत्री देवी के महल की शोभा हुआ करता था। उमर उसकी सत्तर हो गई और शरीर पर घाव भी नासूर समान। तारकोल की सड़क पर चलकर पंजे की गद्दी छलनी हो चुकी थी। खड़े होने तक में असमर्थ। अब गजराज स्वस्थ है और मस्त है।

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आगरा-दिल्ली हाईवे पर फरह के चुरमुरा में यमुना किनारे खुले हाथी अस्पताल में गजराज का इलाज किया जा रहा है। वाइल्डलाइफ एसओएस के हाथी संरक्षण केंद्र को 2010 में खोला गया था। गजराज जब यहां पहुंचा तो उसकी हालत बेहद नाजुक थी। पुठ्ठों पर दो घाव तो ऐसे हैं, जो पूरी तरह आज भी नहीं भर पाए हैं। यहां इलाज कर रहे डॉक्टरों ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने का तरीका निकाला। अमेरिका से मंगाए विशेष किस्म के सोल्यूशन से गजराज के तलवों को लेमिनेट किया गया। फुटकेयर में दक्ष डॉ. एम कमलनाथन बताते हैं कि एक बार किया लेमिनेशन 15 से 20 दिन चलता है। इससे गजराज चलने-फिरने में समर्थ है।

देश के चुनिंदा 20 डॉक्टरों में से एक डॉ. कमलनाथन बताते हैं कि असल में हाथी एक दिन में 200 किलो भोजन करता है। जंगल में इसके लिए वह 11 घंटे चलता है। यही माहौल हाथी संरक्षण केंद्र में दिया जाता है। ऐसा न होने पर हाथी पेट और हड्डी की बीमारी से जल्दी पीड़ित हो जाते हैं। गजराज के मामले में खतरा यह था कि तलवे में अगर कांटा भी चुभता तो पैर की हड्डी के जरिए पूरे शरीर में संक्रमण फैलता। ऐसे में उसे बचाना मुश्किल होता। अकेले गजराज ही नहीं इस केंद्र में 20 हाथी हैं। इनके इलाज को बने चैंबर में एक साथ दो हाथियों का इलाज हो सकता है। एंबुलेंस से आना और शॉवर में नहाना:

देश के किसी भी हिस्से से बीमार हाथी को यहां लाने के लिए विशेष एंबुलेंस डिजाइन की गई है। ट्रकनुमा इस एंबुलेंस में हाथी को चढ़ाने-उतारने के लिए रैंप के अलावा उसे नहलाने को शॉवर भी लगे हैं। हाथी का ट्रांसपोर्टेशन करते समय उसे एक दिन में पचास किमी से अधिक नहीं चलाया जाता। हाथियों में बोन टीबी की समस्या:

हाथी संरक्षण परियोजना निदेशक बैजूराज ने बताया कि हाथियों को होने वाली सभी बीमारियों का इलाज यहां मौजूद है। हाथियों को नाखून और हड्डी की बीमारी और खासकर बोन टीबी अधिक होती है। हर जांच हॉस्पिटल में ही:

बीमार हाथियों का हर टेस्ट हॉस्पिटल में ही हो रहा है। लैब में खून, पेशाब और मल से लेकर सभी तरह की जांच की सुविधा है। खड़े होने में असमर्थ होने पर हाइड्रोलिक मशीन से यहां हाथियों को खड़ा किया जाता है। अत्याधुनिक मशीनों में वाई-फाई युक्त विशेष पोर्टेबल एक्सरे, शरीर के घाव और बीमारी पकड़ने को थर्मल इमैज कैमरा है।

केंद्र पर वर्तमान में 20 हाथी:

केंद्र में 20 हाथियों में 12 मादा और आठ नर हैं। सबसे उम्रदराज हाथी 70 साल की है, वह आंखों से अंधी है। आंध्रप्रदेश से आई सूजी नाम की यह हथिनी अपनी सहेली आशा के साथ ही रहती है। चंचल नोएडा से, लक्ष्मी महाराष्ट्र से, राजू पूना, आशा को इंदौर, भोला को दिल्ली, प्रियंका को इलाहाबाद से भीख मांगने वाले से छुड़ाया गया।


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