पुलिस ने दोहराई आठ वर्ष पहले जैसी गलती
अपहृत ट्रांसपोर्टर अशोक की संदिग्ध मौत ने खड़े किए सवाल
जासं, मथुरा: अपह्रत ट्रांसपोर्टर अशोक अग्रवाल मामले में पुलिस ने आठ वर्ष पहले जैसी गलती कर दी। आरोपित से सख्ती से पूछताछ न करने, ट्रांसपोर्टर की बरामदगी को सक्रियता न दिखाने का नतीजा ही था कि ट्रांसपोर्टर का शव कोसी में पेड़ पर लटकता मिला। आठ वर्ष पहले भूतेश्वर से अपहृत सीए प्रहलाद प्रकरण में पुलिस मामला संदिग्ध मानती रही और उनका शव कालामहल में मिला था।
कोतवाली क्षेत्र के रुक्मणि विहार कॉलोनी निवासी अशोक कुमार सात अक्टूबर की शाम को गायब हो गए थे। उनके भाई सुरेश ने राधाटाउन बाद गांव निवासी शिवराज ¨सह के खिलाफ अशोक कुमार के अपहरण का नामजद मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस ने शिवराज से दो दिनों तक पूछताछ की और छोड़ दिया। अपहरण को संदिग्ध बताते हुए पुलिस अशोक की लोकेशन मिलने का दावा करती रही। ये तक कहा गया कि पकड़े जाने पर अशोक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। दोनों पक्षों में समझौता वार्ता की भी खबर उड़ी। पुलिस की इस कवायद के बीच शनिवार को अशोक का शव कोटवन क्षेत्र में मिला।
ठीक इसी तरह करीब आठ वर्ष पहले भूतेश्वर से अपहृत सीए प्रहलाद ¨सह के मामले में भी पुलिस गुमराह बनी रही। घरेलू विवाद के कारण सीए के खुद ही चले जाने का दावा करती रही। तत्कालीन एसएसपी रामभरोसे के तबादले के बाद फरवरी 2010 में एसएसपी बनकर आए भानु भास्कर ने इसके लिए एसआइटी बनाई। कृष्णा नगर पुलिस ने जिन आरोपितों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया था। एसआइटी को उन्हीं आरोपितों ने सीए की लाश को चौबिया पाड़ा के काला महल क्षेत्र के एक मकान से बरामद कराया था।