Move to Jagran APP

जज्बे व जुनून से फैलाई शिक्षा की रोशनी

मन में जुनून और कुछ करने का हौंसला है तो मंजिल तक पहुंचने के रास्ते अपने आप बन जाते हैं। प्राथमिक विद्यालय के जर्जर भवन और शिक्षकों की कमी को छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया गया। भवन को दुरुस्त कराया साथ ही दो शिक्षका भी पढ़ाने के लिए रख लीं। मजदूरों की बस्ती में चलने वाले इस विद्यालय को प्रधानाध्यापिका ने शहर के बेहतर विद्यालयों की श्रेणी में खड़ा कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 31 Aug 2019 11:52 PM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 06:29 AM (IST)
जज्बे व जुनून से फैलाई शिक्षा की रोशनी
जज्बे व जुनून से फैलाई शिक्षा की रोशनी

मथुरा : कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। हरिवंश राय बच्चन की इन लाइनों को पोर-पोर जिया है उस शिक्षिका ने जिसके इरादे मजबूत थे और मन में कुछ कर गुजरने का जुनून। प्राथमिक विद्यालय जर्जर था, शिक्षकों की कमी थी। लेकिन पढ़ाई में इसे आड़े नहीं आने दिया। न केवल खुद भवन दुरुस्त कराया बल्कि दो शिक्षिका भी अपने पास से पढ़ाने के लिए रख लीं। मजदूरों की बस्ती में चलने वाले इस विद्यालय को प्रधानाध्यापिका ने शहर के बेहतर विद्यालयों की श्रेणी में खड़ा कर दिया।

loksabha election banner

डॉ. अनीता मुद्गल ने वर्ष 2011 के आखिर में झींगुरपुरा, पुराना बस स्टैंड स्थित श्रद्धानंद प्राथमिक विद्यालय में आईं। इस समय विद्यालय की स्थिति काफी खराब थी। विद्यालय में एक शिक्षामित्र, एक शिक्षिका और 35 छात्र-छात्राएं थे। विद्यालय का भवन टूटा था। उन्होंने अपने पास से ही विद्यालय के तीन कमरों की मरम्मत कराकर विद्यालय संचालित करना शुरू किया। धीरे-धीरे विद्यालय में छात्र संख्या भी बढ़ी, लेकिन वर्ष 2016 में यह विद्यालय एकल हो गया। शिक्षिका सेवानिवृत्त हो गईं और शिक्षामित्र का समायोजन हो गया। अब विद्यालय को एक बार फिर चलाने की चुनौती आई। उन्होंने शिक्षकों की कमी को छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया। वर्ष 2016 में दो शिक्षिकाएं निजी रूप से विद्यालय में पढ़ाने के लिए रख लीं। इस तरह शिक्षण कार्य को बाधित नहीं होने दिया। अब रिफाइनरी ने भी विद्यालय में एक हॉल बनाने की मंजूरी दी है और जल निगम से आरओ प्लांट लगाने का काम चल रहा है। छात्र संख्या भी बढ़ाई

विद्यालय में छात्र-छात्रा न आने का भी उन्होंने कारण जानने पर पता चला कि अधिकांश बच्चे मजदूर परिवारों से हैं। मां-बाप काम पर चले जाते हैं और बच्चे छोटे भाई-बहन की देखभाल करते हैं। उन्होंने वर्ष 2016 से 2018 तक प्ले स्कूल चलाकर छोटे-छोटे बच्चों को भी पढ़ाया। विद्यालय में अब 97 छात्र-छात्राएं हैं। नवाचार के भी किए प्रयोग

विद्यालय में छात्र-छात्राओं का मन अध्ययन में लगाने के लिए नवाचार का प्रयोग भी किया। वर्ष 2017 में विद्यालय का अखबार श्रद्धांनद टाइम्स भी छात्र-छात्राओं से निकलवाना शुरू किया। छात्र-छात्राओं से सांस्कृतिक कार्यक्रम भी कराए जाने लगे। यह कार्यक्रम यू ट्यूब भी डाले जा रहे हैं। प्रधानाध्यापिका ने देखी थी गरीबी

मथुरा : श्रद्धांनद प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका डॉ. अनीता बताती हैं कि 1999 में पिता की मौत होने के कारण गरीबी का एहसास था। उन्होंने अपनी पढ़ाई थी अर्निंग विद लर्निंग के सिद्धांत पर की। वह काम करती रहीं और पढ़ती रहीं। वह गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहती हैं। यदि कुछ बच्चे भी अच्छे निकल गए तो अपने जीवन को धन्य समझेंगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.