उपकरणों को 'दिव्य' स्वरूप दे रहे दिव्यांग
अपने दर्द को महसूस कर किसी ने कैलीपर बनाने में महारत हासिल की तो कोई कृत्रिम पैर में फूंकता जान
मनोज चौहान, मथुरा: हादसों ने तो उन्हें दिव्यांग बना दिया, लेकिन उन्होंने अपने दिव्य गुणों से अन्य दिव्यांगों की तकलीफ कम करने की ठान रखी है। इससे रोजगार तो मिल रहा है, साथ ही दिव्यांगों के दर्द को महसूस कर उपकरणों में जान फूंककर सुकुन मिल रहा है। किसी को कैलीपर बनाने में महारत हासिल है तो कोई कृत्रिम पैर बनाता है। मकसद एक है कि इन उपकरणों से अन्य दिव्यांग अपने सपनों को पूरा करें।
नैनीताल के मूल निवासी राजेंद्र सिंह नेगी की उम्र अब 45 वर्ष हो गई है। करीब 25 वर्ष पहले एक बस हादसे में उनका पैर कट गया था। प्राइवेट नौकरी करते थे। चलने में दिक्कत होने लगी, लेकिन नेगी ने हार नहीं मानीं। शहर के कल्याणं करोति संस्था में दिव्यांगों के लिए उपकरण बनाने का काम में जुट गए। अजमेर के रहने वाले अर्जुन सिंह भी एक हादसे में अपना एक पैर गवां चुके हैं। चलने में दिक्कत हुई, तो उन्होंने कृत्रिम पैर लगवाया। दूसरों की दिक्कत उनसे देखी नहीं जाती। ऐसे में वह भी संस्था के माध्यम से कृत्रिम पैर बना रहे हैं। पुन्जेरा के मूल निवासी राजेंद्र सिंह का एक पैर बचपन से पोलियो से ग्रस्त है। पहले बैशाखी से चलते थे। दिव्यांगों को जिदगी की गाड़ी चलाने में क्या दिक्कत आती है, वह खूब जानते हैं। दिव्यांगों का दर्द देखा नहीं जाता। उन्होंने भी इसी संस्था में कॉप्लर बनाने का काम सीख लिया। अब दूसरे दिव्यांगों के लिए यह कॉप्लर तैयार करता है। कृत्रिम पैर के ऊपर जो बाइंडिग होती है, उसे कॉप्लर कहते हैं। राजेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि कल्याणं करोति में हम करीब दो दशक से नौकरी कर रहे हैं। इससे हमारा परिवार पलता है, लेकिन इसके पीछे एक मकसद ये भी है कि दिव्यांगों के सहारे को अधिक से अधिक उपकरण तैयार करें, ताकि उनको कतई परेशानी न हो। राजेंद्र और अर्जुन मीणा कहते हैं कि हमारे साथ जो हुआ सो हुआ, दूसरों को इन दुश्वारियों से न जूझना पड़े। ये काम कर हमारे दिल को सुकून मिलता है। दिव्यांगजनों को कृत्रिम उपकरण बनाने के लिए दिव्यांग ही लगाए गए हैं। इन्होंने पहले प्रशिक्षण लिया और अब काम करने लगे हैं। जाहिर है दिव्यांग जब दिव्यांगों के लिए उपकरण बनाते हैं, तो उसमें अहसास को भी जीते हैं।
सुनील शर्मा, महासचिव कल्याणं करोति