धार्मिक मामलों में अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं: शंकराचार्य
कहा राम मंदिर निर्माण के लिए चाहिए पटेल जैसे मनोबल वाला नेता, अदालत में चल रहे रामजन्मभूमि केस का आधार ही गलत
जासं, वृंदावन (मथुरा): पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अदालत द्वारा धारा 377 व विवाहेतर संबंधों को मान्यता देने के मामले में कहा कि जो विषय धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र के हैं, उनमें अदालत हस्तक्षेप न करे। कहा कि 70 वर्ष पहले संविधान लागू न था। तब शिक्षा, रक्षा, वाणिज्य उद्योग, विवाह आदि प्रकल्प धार्मिक सीमा में थे, न कि संवैधानिक सीमा में। धर्म इतना व्यापक है कि समाज को बांधकर रखने की उसमें क्षमता है। सारी व्यवस्था को सेक्युलर खाते में डाल दिया जाएगा तो ¨हदुओं का अस्तित्व ही क्या होगा। कोलकाता व ओडिसा हाईकोर्ट ने भी कई धार्मिक मामलों में उनसे राय लेने के बाद उन्हें लागू करने का निर्णय दिया है।
बुर्जा मार्ग स्थित हरिहर आश्रम में मंगलवार को पत्रकारों से रूबरू शंकराचार्य ने राम मंदिर निर्माण के सवाल पर कहा कि आजादी के बाद कांग्रेस व भाजपा ने सिद्ध कर दिया कि पार्टी के लिए राम जन्मभूमि व रामलला हैं। लेकिन रामलला व जन्मभूमि के लिए पार्टी नहीं है। उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे मनोबल वाला नेता चाहिए। अदालत में चल रहे रामजन्मभूमि के केस का आधार ही गलत बताते हुए शंकराचार्य ने कहा कि अदालत ने मान लिया कि उक्त स्थान पर मस्जिद है। उन्होंने केस करने वालों को अदूरदर्शी करार देते हुए कहा कि अगर मस्जिद के पक्ष में निर्णय आता है तो ये भविष्य के लिए खतरा होगा। यही निर्णय काशी विश्वनाथ और मथुरा के मामलों में भी माना जाएगा। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से मंदिर निर्माण के लिए आगे आने की अपील भी की।