शिक्षामित्रों की जो करेगा बात, वहीं बनेगा सरताज
जागरण ने किया चुनावी संवाद जाने मुद्दे 50 हजार वोट तय करेंगे जीत-हार का बड़ा अंतर
जागरण संवाददाता, मथुरा: आगामी लोकसभा को लेकर शिक्षामित्रों का एजेंडा स्पष्ट है। उन्होंने साफ और कड़े शब्दों में कह दिया है, जो उनके हितों की बात करेगा, वही सरताज बनेगा। ऐसा न होने पर जिले का लगभग 50 हजार वोट हार-जीत के अंतर में बड़ी भूमिका निभा सकता है। वहीं, जो उन्हें कोरे आश्वासन दिए गए उसका बदला इस चुनाव में अपने अधिकार का प्रयोग कर लिया जाएगा। इन्हीं सब मुददे को लेकर जागरण ने उनके साथ चुनावी संवाद किया।
25 जुलाई 2015 की तारीख शिक्षामित्रों के लिए किसी झटके से कम नहीं थी। यह वह दिन था जब सुप्रीमकोर्ट ने समायोजन बहाली को रद कर शिक्षामित्रों के स्थायी नौकरी का सपना एक झटके में तोड़ दिया। फैसले के विरोध में कई दिनों तक आंदोलन तक हुए। कर्ज ले चुके कई शिक्षामित्रों ने अपनी जीवनलीला तक समाप्त कर ली। सिर्फ नेताओं द्वारा कोरे आश्वासन ही दिए जाते रहे। इससे आजिज शिक्षामित्रों ने अब वोट से बदला लेने की ठानी है। जिले में करीब 2300 शिक्षामित्र है। उनका कहना है कि यह संख्या तो केवल हमारी है, जबकि हमारी रिश्तेदारी को मिला लिया जो आंकड़ा बैठेगा लगभग 50 हजार। यानि इतने वोट किसी भी प्रत्याशी को जिताने या हराने के लिए बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में समायोजन बहाली को नजरंदाज करना भारी पड़ सकता है। वहीं, कांग्रेस के घोषणापत्र को शिक्षामित्रों ने सही करार दिया। उनका कहना था कि पूर्व में उनके द्वारा की गई घोषणाएं लगभग पूरी ही हुई हैं। ये हैं एजेंडा:
-शिक्षक पद पर पुन: बहाली होनी चाहिए
-रोजगार की समस्या समाप्त हो
-सुरक्षा व्यवस्था में सुधार जरूरी
-खराब सड़कें दुरुस्त होनी चाहिए।
-यमुना प्रदूषण का स्थायी समाधान निकले
-स्कूलों की महंगी फीसों पर नियंत्रण रखा जाए
-किसानों की फसलों का उचित मुआवजा मिले।
-पुरानी पेंशन बहाल हो शिक्षामित्रों का समायोजन बहाल हो और उन्हें 19 वर्ष शिक्षक कार्य करने का हक मिले। यह सबसे बड़ा मुददा है, इस पर अब किसी तरह की जुमलेबाजी नहीं चलने वाली।
खेम सिंह चौधरी, जिलाध्यक्ष उप्र प्राथमिक शिक्षामित्र संघ
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जरूरतमंद किसानों का संपूर्ण कर्ज माफ होना चाहिए। वहीं, देश में बेरोजगारी की समस्या काफी जटिल है। इसको सुलझाया जाना काफी जरूरी हो चुका है।
राजकुमार चौधरी
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कानून व्यवस्था में सुधार होना जरूरी है। किसी भी घटना के कुछ दिनों तक ही बस सतर्कता बनी रहती है। उसके बाद सब वैसा का वैसा ही हो जाता है।
ममता कुमारी
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लगभग दो साल से भी अधिक समय से समायोजन बहाली का मामला अटका हुआ। क्यूं इस कोई पर उचित फैसला नहीं ले पा रहा है। इसका सुलझना जरूरी है।
रीना देवी