जब मां चामुंडा ने रूप और सनातन को दिए दर्शन
पांच सौ साल पहले वृंदावन की खोज में आए चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों ने किया चामुंडा देवी मंदिर का उल्लेख
वृंदावन, जासं। पांच सौ साल पहले जब वृंदावन विलुप्त प्राय: था। चारों ओर घने हरियाली से आच्छादित वृंदावन को खोजने में लगभग असमर्थ हो चुके चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप और सनातन गोस्वामी को मां चामुंडा ने कन्या रूप में दर्शन दिए। इसी के बाद रूप और सनातन गोस्वामी वृंदावन की खोज शुरू हो पाई थी। ऐसा उल्लेख खुद रूप और सनातन ने अपने संस्मरणों में किया है।
राजपुर स्थित मां चामुंडा देवी मंदिर के सेवायत बिहारीलाल शर्मा ने बताया कि पांच सौ साल पहले जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन आए और उन्हें वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों के होने का अनुभव हुआ, लेकिन वृंदावन से गोवर्धन, बरसाना, नंदगांव और गोकुल काफी दूरी पर स्थित था। ये सोचकर कि क्या भगवान इतनी दूर गाय चराने प्रतिदिन आ सकते थे। उनके मन में वृंदावन का मुख्य स्थल होने पर संशय होने लगा था। चैतन्य महाप्रभु खुद तो लौट गए। वृंदावन और भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों की खोज करने के लिए उन्होंने अपने शिष्य रूप और सनातन गोस्वामी को भेजा। रूप और सनातन गोस्वामी वृंदावन और भगवान की लीला स्थलियों की खोज करते करते यमुना किनारे जहां चामुंडा मंदिर स्थित है कई साल बाद पहुंचे। उस समय तक किसी तरह के संसाधन नहीं थे। यहां पहुंचे और वृंदावन की खोज करने में वह काफी थक गए। निराश सनातन यमुना किनारे जिस स्थान पर चामुंडा मंदिर है वहां जमुना महारानी से प्रार्थना करने लगे कि हे यमुना माता मुझको काफी दिन बीत गए में वृंदावन की खोज नहीं कर सका तो गुरु के आदेश का पालन कैसे कर सकूंगा। यदि वापस लौटकर गया तो गुरु को क्या मुंह दिखाऊंगा। आप मुझे स्वीकारें, तभी मां ने छोटी कन्या का रूप धारण कर दर्शन दिए। कहा आप को गोस्वामी ने भेजा है, आप इस कार्य के लिए आये हैं, उसी स्थान पर हैं। यह वृंदावन है। वही से मां ने वृंदावन के बारे में बताया। तब गोस्वामी ने कन्या के बारे में पूछा तो बताया कि वह आदि काल से ही यहां निवास करती हैं, सती खंड से उत्पन हूं, यहां चामुन्डा पीठ के नाम से जानी जाती हूं। सनातन गोस्वामी ने अपनी जीवनी में यह सब लिखा है।