आत्मनिर्भर बनाए जाएंगे पशु आश्रय केंद्र, ग्रामीणों को मिलेगा रोजगार
बेसहारा गोवंश को आसरा देने के साथ, गोमूत्र और गोबर से तैयार उत्पादों की होगी मार्केटिंग, पशुपालन विभाग की मंजूरी का इंतजार
मथुरा, जासं। प्रत्येक गांव में गोचारण भूमि पर तार फेंसिंग कर बनाए जाने वाले पशु आश्रय केंद्र शुरुआत में सरकार के अनुदान पर चलेंगे। सरकार प्रति पशु प्रतिदिन 100 रुपये चारे के लिए प्रदान करेगी। इनका संचालन डीएम की अध्यक्षता में गठित कमेटी के द्वारा होगा। बाद में इन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए बड़ी कंपनियों से कांट्रेक्ट कर उन्हें गोमूत्र बेचा जाएगा। ग्रामीणों को पंचगव्य बनाने और उसकी मार्के¨टग के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे यह उत्पाद बाजार में बेचे जा सकें। मॉडल बनेंगे 10 गांव
वेटेरिनरी विवि गोवंश के गोबर और गो मूत्र से आर्गेनिक खेती की तकनीक भी देगा। इसके लिए मथुरा के 10 गांवों को मॉडल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके बाद इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा। गोबर व मूत्र से पेस्टीसाइड्स आदि भी बनाए जाएंगे। विवि देगा तकनीकी
पशु आश्रय केंद्रों की डिजाइन, मै¨पग, ब्री¨डग पॉलिसी, टीकाकरण, पंचगव्य के उत्पाद, जागरूकता, आर्गेनिक खेती, उत्पादों की मार्के¨टग आदि की ट्रे¨नग देने का कार्य वेटेरिनरी विवि करेगा, जबकि उसे अमलीजामा पशुपालन विभाग पहनाएगा। 'बैठक में लिए गए निर्णयों का एक ही मकसद है कि समस्या का स्थाई समाधान हो, ऐसा न हो कि प्रोजेक्ट सफेद हाथी बनकर रह जाए। इस योजना के प्रदेश में लागू होने से जहां बेसहारा गोवंश की समस्या का स्थाई समाधान हो जाएगा, वहीं लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे'।
प्रो. केएमएल पाठक, कुलपति