कान्हा के लाड़ से जुड़ीं आस्था की घटाएं
मंदिर के अंदर कान्हा को बाहरी मौसम का अहसास कराती हैं घटाएं कपड़ों से तैयार घटाओं में आस्था के साथ समाई श्रद्धा
विनीत मिश्र, मथुरा : ब्रज में सावन बिना सब अधूरा है। सावन में ब्रज की अपनी संस्कृति है। कान्हा के लाड़ से भी कई परंपराएं जुड़ी हैं। इन्हीं में एक हैं घटाएं। मंदिरों में घटाओं की आस्था कान्हा के लाड़ से जुड़ी है। सावन में इंद्रधनुष के रंगों की तरह मंदिर में घटाएं सजाकर कान्हा को अलग-अलग मौसम का अहसास कराया जाता है। सावन आया, तो घटाओं की तैयारी भी हो गई। विभिन्न रंगों के कपड़ों से तैयार घटाओं में आस्था है तो श्रद्धा भी समाई है। द्वारकाधीश मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर स्थित ठाकुर केशवदेव मंदिर में घटाएं सजाने की तैयारी तेज हो गई है।
दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज में बालक के रूप में सेवा होती है। माना जाता है कि बालक बहुत ज्यादा बाहर नहीं जा पाते, ऐसे में उन्हें मंदिर के अंदर ही प्रकृति का अहसास कराने को घटाएं सजाई जाती हैं। जिले में पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के द्वारकाधीश मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थित केशवदेव मंदिर में घटाएं सजती हैं। सावन में अलग-अलग तिथियों में ये घटाएं सजती हैं। सफेद घटा कान्हा को बाहर साफ मौसम होने का अहसास कराती है, तो काली घटा बारिश का मौसम होने का। इसके अलावा हरी घटा हरा-भरा माहौल दर्शाती है। जिस दिन जिस रंग की घटा सजाई जाती है, उस दिन पूरा मंदिर उसी रंग के कपड़ों से सजता है। यहा तक कि ठाकुर जी भी उसे रंग के परिधान पहनते हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान और द्वारकाधीश मंदिर में छह अगस्त से घटाएं सजेंगी। घटाओं में आधुनिकता
समय के साथ मंदिरों में सजने वाली घटनाओं में भी आधुनिकता आ गई। पहले केवल अलग-अलग रंगों के कपड़ों की घटाएं ही सजती थीं, लेकिन अब इसके साथ ही फूल-पत्ती और अन्य सामग्री भी लगाई जाने लगी। जब काली घटा सजती है, तो मंदिर परिसर में अहसास होता कि जैसी सच में काली घटाएं छा गई हों। इसके लिए पूरे मंदिर को काले कपड़ों से सजाया जाता है, ठाकुर जी को खुद काले रंग के परिधान धारण कराए जाते हैं। मौसम का अहसास कराने के लिए कोयल की कूक की आवाज बजती है, तो पहाड़ और कृत्रिम बारिश भी कराई जाती है। ये सजती हैं घटाएं
केसरी घटा, हरी घटा, सोसनी घटा, गुलाबी घटा, सफेद घटा, श्याम (काली) घटा, लहरिया घटा, लाल घटा, आसमानी घटा। हम ठाकुर जी की बाल रूप में सेवा करते हैं। इसलिए उन्हें बाहरी मौसम का अहसास कराने के लिए मंदिर के अंदर घटाएं सजाते हैं। जिस रंग की घटा होती है, वह उसी तरह के मौसम का अहसास कराती है। ये परंपरा दशकों से चल रही हैं।
एडवोकेट राकेश तिवारी, मीडिया प्रभारी, द्वारकाधीश मंदिर। ठाकुर जी को मौसम का अहसास हम घटाओं के जरिए कराते हैं। अलग-अलग रंग की मनोहारी घटा सजाकर ये बताने की कोशिश करते हैं कि आज मौसम बाहर का ऐसा है।
गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी, सदस्य, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान। मंदिरों में घटाएं कान्हा की आस्था से जुड़ी हैं। बाहर के मौसम आ अहसास कराने के लिए घटाएं सजाई जाती हैं। आकर्षक घटाएं देखने के लिए श्रद्धालुओं क भीड़ जुटती है।
पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया, ब्रज लोक संस्कृति मर्मज्ञ।