बुला रही ब्रजभूमि, गूंजेंगे राधे-राधे के बोल
नवनीत शर्मा मथुरा शुक्रवार से अधिक मास शुरू हो रहा है। ये वह मास है जब ब्रज की रज माथे से लगान
नवनीत शर्मा, मथुरा: शुक्रवार से अधिक मास शुरू हो रहा है। ये वह मास है, जब ब्रज की रज माथे से लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु ब्रजभूमि में आते हैं। राधे-राधे के जयकारों से ब्रजभूमि गूंजती है। श्रद्धालु आएंगे और ब्रजभूमि में 84 कोस परिक्रमा भी लगाएंगे। गली-गली में राधे-राधे के बोल गूंजेंगे। हालांकि कोरोना काल की वजह से गत वर्षो की अपेक्षा लाखों श्रद्धालु तो नहीं आएंगे, लेकिन यह संख्या हजारों में जरूर रहेगी। इससे छह महीने से पसरा जरूर सन्नाटा टूट जाएगा।
परिक्रमा का महत्व
कथा है कि प्रभु राम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने लवणासुर राक्षस के वध के बाद ब्रज 84 कोस की परिक्रमा लगाई थी। उद्धव ने भी गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की। माधव संप्रदाय के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज,महाप्रभु बल्लभाचार्य,गोस्वामी विठ्ठलनाथ,चैतन्य महाप्रभु,सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा के ग्रंथों में इस परिक्रमा का वर्णन मिलता है। इनके मुताबिक 12 वन, 24 उपवन, चार-चार निकुंज, वनखंडी, पोखर, 365 कुंड, चार सरोवर, 10 कूप, चार तट, चार वट वृक्ष, पाच पहाड़, चार झूला और 33 रासस्थल से परिक्रमा गुजरती है। परिक्रमा में यूपी के साथ हरियाणा और राजस्थान का भी कुछ हिस्सा आता है। अधिकाश परिक्रमा गावों से होकर गुजरती है। श्रद्धालुओं की सेवा का कार्य ग्रामीण संभालते हैं। श्रद्धालु करीब एक सप्ताह में 84 कोस की परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। गोवर्धन व वृंदावन परिक्रमा में भी जुटेगी भीड़
ब्रज 84 कोस की परिक्रमा के साथ ही गोवर्धन और वृंदावन की परिक्रमा का भी महत्व है। जो श्रद्धालु ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा पूरी नहीं कर पाते हैं, वह गोवर्धन या वृंदावन की परिक्रमा कर पुण्य कमाते हैं। कठोर हैं यात्रा के नियम:
ब्रज 84 कोस परिक्रमा के नित्य नियम कठोर हैं। यात्रा में 36 नियमों का पालन करना जरूरी है। जमीन पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य का पालन, नंगे पैर रहना, नित्य पूजा-अर्चना, कथा सुनना, संकीर्तन, फलाहार के अलावा क्रोध, मिथ्या लोभ जैसे दुर्गुणों का त्याग शामिल हैं। सभी तीर्थो के दर्शन
धाíमक मान्यता है, भगवान श्रीकृष्ण ने माता-पिता की धार्मिक यात्रा करने की इच्छा पूरी करने को सभी देवी-देवताओं से ब्रज में आने का आह्वान किया। ब्रज 84 कोस में सेतुबंधु रामेश्वर कुंड, आदि ब्रदीनाथ, व्योमासुर की गुफा, फिसलनी शिला, चरण पहाड़ी, गया कुंड, यशोदा कुंड, चंद्रमाजी का मंदिर मौजूद हैं। यह काम्यवन इलाके में हैं। अधिकमास का महत्व
हिन्दू पंचाग में 12 महीने होते हैं, इसका आधार सूर्य और चंद्रमा होता है। सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब छह घटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है.। इन दोनों वर्षो के बीच करीब 11 दिनों का फासला होता है। यह फर्क हर तीन साल में एक महीने के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीसरे साल में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है। बढ़ने वाले इस महीने को ही अधिकमास या मलमास कहा जाता है। प्रतीकात्मक निकलेगी ब्रजयात्रा
अधिकमास से अतिरिक्त भी 84 कोस की परिक्रमा के लिए कई ब्रजयात्राएं निकलती हैं, लेकिन इस बार कोरोनाकाल में ये यात्राएं टाल दी गई हैं। मान मंदिर बरसाना के सचिव सुनील सिंह बताते हैं कि हमारी यात्रा दीपावली से पहले निकलती थी और करीब 40 दिन तक चलती थी। दस हजार से अधिक श्रद्धालु शामिल होते थे, लेकिन इस बार प्रतीकात्मक यात्रा में 40 से 50 श्रद्धालु ही शामिल होंगे।
कोरोना वायरस के चलते भीड़ कम होगी। किसी को भी बिना मास्क के परिक्रमा नहीं करने दी जाएगी। वहीं मंदिरों में भी मास्क, सैनिटाइजर और शारीरिक दूरी का पालन अनिवार्य रहेगा।
राहुल यादव, एसडीएम गोवर्धन। - अधिकमास में ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा लगाने, दान-पुण्य और धार्मिक अनुष्ठान करने का कई गुना फल मिलता है। यही कारण है कि इस मास में धार्मिक आयोजन अधिक किए जाते हैं।
- अमित भारद्वाज, संरक्षक, श्रीमद्भागवत कथा आयोजन समिति