सांसों के गणित में रक्तदान का सूत्र
दूसरों की जिदगी बचाने के लिए डॉ. प्रवीन ने 39 बार बांहें फैलाई इंटरमीडिएट में थे तब पहली बार किया था रक्तदान
मथुरा, जासं। कहते हैं किसी की जिदगी बचाना, पुण्य के समान है। इस वाक्य को अपने जीवन में एक चिकित्सक ने उतार लिया। जिदगी की सांसों के गणित में इस चिकित्सक ने रक्तदान का सूत्र फिट किया और फिर उसके सहारे दूसरों को नई जिदगी देते रहे।
1996 में पहली बार रक्तदान कर एक रिश्तेदार की जिदगी बचाई, तो फिर ये कारवां चल पड़ा। 23 वर्षों में रक्तदान के लिए 39 बार बांहें फैला दीं। डॉ. प्रवीन भारती मूलत: हाथरस के रहने वाले हैं। सीएमओ दफ्तर में जिला कंट्रोल रूम प्रभारी हैं। जिसे भी जरूरत होती है, एक फोन पर रक्तदान को पहुंच जाते हैं।
डॉ. प्रवीन बताते हैं कि वर्ष 1996 में वह इंटरमीडिएट में पढ़ रहे थे। तभी एक रिश्तेदार सड़क हादसे में घायल हो गए। उन्हें खून की जरूरत थी। कोई न दिखा तो खुद प्रवीन वहां रक्तदान को पहुंच गए। उन्होंने एक बोतल खून दिया और रिश्तेदार की जिदगी भी बच गई। ये ऐसी घटना थी, जिसने प्रवीन को अंदर से विचलित कर दिया। सोचा रोज न जाने कितने लोग खून की जरूरत पूरी न होने पर दम तोड़ देते हैं। यहीं से उनके रक्तदान का सिलसिला शुरू हुआ। अब तक 39 बार रक्तदान किया। हर विशेष दिवस पर वह रक्तदान तो करते ही हैं, जब किसी को आपातकाल में जरूरत पड़ती है, तो भी रक्तदान को पहुंच जाते हैं।
26 बार किया रक्तदान
राया में रहने वाले अमित गोयल रक्तदाता फाउंडेशन के संस्थापक हैं। अब तक 26 बार रक्तदान किया। इनमें छह बार रक्तदान किया, तो 20 बार जरूरतमंदों को प्लेटलेट्स दीं। रक्त की जरूरत समझ उन्होंने चार साल पहले फाउंडेशन की स्थापना की। अब तक 21 शिविर लगा चुके हैं। इनमें 2026 यूनिट रक्त एकत्र हो चुका है।