अब नाय तौय कबहू दैवेंगे गारी, जान बख्श दो राधाप्यारी
श्रीजी मंदिर के कपाट खुले और पट उठे तो मंदिर परिसर राधे-राधे के जयघोष से गूंजायमान हो उठा
बरसाना, जासं। शुक्रवार सुबह मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही लोग अपनी आराध्य शक्ति लाडिली की एक झलक पाने के लिए पहुंच गए थे। कोई सीढि़यां चढ़ रहा था तो कोई पालकी में सवार होकर ब्रह्मांचल पर्वत के शिखर पर विराजमान राधारानी की शरण में पहुंच रहा। जयपुर मंदिर के मार्ग पर होकर चार पहिया वाहनों से वीआइपी पहुंच रहे थे। करीब डेढ़ सौ मोटरसाइकिल भी तीर्थयात्रियों को दर्शन कराने के लिए दौड़ीं। तीर्थयात्रियों को मंदिर तक पहुंचाने और वापस लाने का किराया भी मोटरसाइकिल चालक उनसे वसूल कर रहे थे। श्रीजी मंदिर के कपाट खुले और पट उठे तो मंदिर परिसर राधे-राधे के जयघोष से गूंजायमान हो उठा। अधिक भीड़ के चलते टकटकी लगाकर राधारानी के दर्शन करने की मनोकामना आज तीर्थयात्रियों की पूरी नहीं हो पा रही थी। जितने श्रद्धालु दर्शन करके मंदिर के निकास द्वार से निकलते, उतने ही प्रवेश द्वार से अंदर आ रहे थे। बरसाना की गलियां होली की उमंग से इतरा रहीं थीं। बाजार सजे हुए थे। दुकानों से रंग बिरंगी पगड़ी उत्साही हुरियारे खरीदते, सिर पर रखते और फिर इठलाते हुए मंदिर की तरफ बढ़ जाते। सेल्फी और फोटोग्राफी करना कोई नहीं भूल रहा था। कोई पहाड़ी के शिखर से बरसाना को निहार रहा है तो कोई धरा से राधारानी मंदिर की खूबसूरत तस्वीर को अपने दिल में उतार रहा है।
धोती कुर्ता, लहंगा-चुनरी पहने तीर्थयात्री अपनी देसी संस्कृति सभ्यता को जीवंत किए दिखे। कपोलन पर राधे नाम की लगी छाप भक्ति के संग-संग होरी के रंग रसीले प्रेम को गहरा कर रही थी। सुबह आठ बजे से दो बजे तक यही क्रम चलता रहा। इसके बाद राधाजी मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए, पर हुरियारे बनकर आए तीर्थयात्री मंदिर के बाहर ही राधे-राधे जपते रहे। नंदगांव के नटवर नंद किशोर की टोली गेरुआ और पीली बगलबंदी पहने हुए बरसाना की तरफ बढ़ रहे थे। सिर पर रंग बिरंगी पगड़ी और हाथ में लाठी ढाल लेकर आगे ऐसे बढ़ रहे थे, जैसे वह राधारानी और उनकी सखियों से होरी में जंग जीतने ही वाले थे। प्रिया कुंड पर सभी ने भांग छानी और फिर उसकी तरंग के साथ ही होली की मस्ती भी हिलोर भरने लगी। सभी मंदिर की तरफ बढ़े और गायन हुआ। उतर कर नीचे आए तो रंगीली गली में राधारानी ने अपनी सखियों के संग घेर लिए। संकरी गली और ऊंची-ऊंची हवेलियों के बीच कान्हा की टोली फंस गई। खूब जोर लगाया, पर एक नहीं चली। खिसिया कर तारी बजाई और गारी सुनाई। श्रीजी और उनकी सखियां भी ताव में आ गई। उठा ली लाठी और तड़ातड़ हुरियारों पर बरसाने लगी। भगदड़ मच गई। कोई ढाल अड़ावे तो कोई लाठी से अपनी जान बचावे। सबरी हेकड़ी हुरियारों की बरसाने में राधारानी ने निकाल कर रख दी। कोई हाथ जोड़े तो कोई पांय पड़े। पर, लाठी की मार लगातार बेचारे हुरियारों पर पड़ती रही। हुरियारों के मुख से अब यही बोल सुनाई दे रहे थे कि अब नाय कबहू तौय दैवेंगे गारी, आज जान बख्श दो राधा प्यारी।