ब्रज की खास पहचान बनता जा रहा 'एप्पल बेर'
चौमुंहा के आसपास आठ से अधिक बेरों की प्रजातियों की पैदावार, देश की बड़ी मंडी में बढ़ी खपत, अन्य फसलों से दो गुना लाभ
मथुरा, योगेश जादौन। गोला, डीग, स्मॉली, पेंबदी, ¨भडी, तसीना, काठा, एप्पल। ये सब्जी और फलों के नाम नहीं बल्कि ब्रज में पैदा होने वाले बेरों की वैरायटी है। इसमें एप्पल(सेव) के आकार का बेर इन दिनों मंडियों में धूम मचाए है। स्मॉली और गोला बेर की भी मंडी में बहुत मांग है।
जीएलए विश्वविद्यालय से दिल्ली की ओर नेशनल हाइवे के दोनों ओर करीब आधा किलोमीटर में बेर के तमाम बाग हैं। करीब सौ साल पहले आझई गांव में पलवल से कलम लाकर बेर की खेती शुरू की गई थी। तब किसी को नहीं पता था कि यह इलाका एक दिन बेर की प्रजाति के लिए इस कदर मशहूर होगा।
हाल ही में 'जागरण' के 'जय किसान' अभियान से प्रभावित होकर कस्बा चौमुहां के जगदीश यादव ने एप्पल बेर की खेती की सोची। 'जागरण' के 'जय किसान' अभियान के दौरान जीएलए विश्वविद्यालय में चौपाल लगाई थी। इसमें जगदीश ने ड्रिप इरीगेशन व एप्पल खेती के जानकार संजीव निवासी चौमुंहा से मुलाकात की। जानकारी लेने के बाद जगदीश ने जुलाई में अपने चार एकड़ खेत में एप्पल बेर की पौध रोपी।
20 साल तक बेर देगा पौधा
मात्र छह माह में ही फसल तैयार हुई और वह अब तक चार कुंतल एप्पल बेर बेच चुके हैं। एप्पल बेर इस समय 110 रुपये किलो बिक रहा है। एक पौधा करीब 20 साल तक पैदावार देगा। 80 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से 1240 पौधे लगाए। खर्चा आया करीब सवा लाख रुपये। ये है खासियत
एप्पल बेर मूल रूप से थाईलैंड में पाया जाता है। भारत में सबसे पहले जोधपुर में इसका बाग लगाया गया था। प्रोटीन और मिनरल्स सेव जैसे ही होने के कारण इसे एप्पल बेर कहा जाता है। पपीता और सरसों भी
जगदीश ने इसी खेत में पपीता की 'रेड लेडी 786' प्रजाति भी लगा दी। इस पर खर्च हुए 15 हजार रुपये। बहुफसल खेती की तकनीकी अपनाते हुए खेत में सरसों भी बो दी। ¨सचाई को 1.5 लाख रुपये खर्च कर ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगाया। बेरों की खेती में आमदनी दोगुनी
चौमुहां: मनोज व रामजीत ¨सह बताते हैं कि बगीचे स्थिति के अनुसार ¨जस पर उठते हैं। सामान्यत: 50-60 हजार प्रति एकड़ का रेट रहता है। एक दिन में एक आदमी करीब एक कुंतल बेर तोड़ देता है। सीजन की शुरूआत में बेरों का भाव सौ रुपये प्रति किलो तक मिलता है। अब 40-50 रुपये किलो मिल रहा है। पेंबदी बेर को सुखाकर छुआरा बनाकर गर्मियों में महंगी दरों पर बिकता है। इन मंडियों में जाता है बेर
बेरों का लदान पलवल, होडल, फरीदाबाद, दिल्ली आदि जगहों की मंडियों के लिए हो रहा है। किसान चुन्नी ¨सह कहते हैं कि यदि बेरों की खेती के लिए तकनीकी जानकारी के साथ ऋण और स्थानीय बाजार की व्यवस्था हो जाए तो गरीबों का फल उनको अमीर कर सकता है।