अक्षय पात्र ने तीन अरब वीं थाली परोस रचा कीर्तिमान
केंद्र और राज्य सरकारों की साझीदारी से मिड डे मील वितरण का कार्य कर रही संस्था, वर्ष 2000 में बेंगलुरु में 1500 ब'चों को मिड-डे मील वितरित कर की थी शुरुआत
वृंदावन, जासं। अक्षय पात्र ने सोमवार को वृंदावन में तीन सौ करोड़ वीं थाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ से परोसवा कर दुनिया में एक कीर्तिमान रचा। केंद्र व राज्य सरकार और दानदाताओं के सहयोग से संस्था पिछले 19 वर्ष से लगातार मिड-डे-मील का वितरण कर रही है। देश के 12 राज्यों में 43 रसोइयों के माध्यम से 17.6 लाख से अधिक बच्चों को मिड-डे मील उपलब्ध कराया जा रहा है। इनमें मथुरा के 1.75 लाख बच्चों भी शामिल हैं।
अक्षय पात्र ने वर्ष 2000 में इस संस्था का गठन कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चों की मदद के लिए किया था। बेंगलुरु में 1500 बच्चों को पहली बार मिड-डे मील देकर इसकी शुरुआत की गई। वर्ष 2012 में संस्था ने सौ करोड़ वीं थाली परोस कर इतिहास रचा था। वर्ष 2016 में दो सौ करोड़ का आंकड़ा छुआ। तब 27 अगस्त 2016 को संस्था ने बेंगलुरु में एक उत्सव मनाया था। वर्ष 2020 तक छह सौ करोड़ वीं थाली परोसने का लक्ष्य
अक्षय पात्र फाउंडेशन के चेयरमैन मधु पंडित दास ने बताया कि भोजन वितरण के लिए श्रील प्रभुपाद से प्रेरणा मिली थी। उन्हीं की प्रेरणा से सोमवार को संस्था ने 300 करोड़ वीं भोजन की थाली परोसी है। वर्तमान में 14702 स्कूलों में भोजन पहुंचाने का काम संस्था कर रही है। लक्ष्य वर्ष 2020 तक देशभर में करीब 50 लाख छात्रों को प्रतिदिन भोजन परोसने का है। वर्ष 2020 तक छह सौ करोड़ वीं थाली परोसने का भी लक्ष्य है। तीन हजार गर्भवती महिलाएं भी शामिल
योजना में कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, गुजरात, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ में ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल शामिल हैं। गुजरात में 1. 50 लाख, राजस्थान में 1. 30 हजार, बेंगलुरु में 2.30 लाख, हुबली में 1.81 लाख बच्चों के अलावा बेंगलुरु की तीन हजार गर्भवती महिलाएं को भी शामिल किया गया है।
दुनियाभर के लिए प्रेरणा बनी रसोई
वाइस चेयरमैन चंचलापति दास ने बताया कि लाखों बच्चों तक भोजन पहुंचाने को फाउंडेशन टेक्नोलॉजी का प्रयोग करता है। संस्था की अत्याधुनिक रसोई आज अध्ययन का एक विषय बन गई है। दुनिया भर के लोग रसोई देखने आते हैं। अक्षय पात्र का यह कार्यक्रम दुनिया को सबसे बड़ा स्कूली लंच कार्यक्रम बन चुका है। लिम्का बुक में भी नाम
स्कूली बच्चों को भोजन परोसने में अग्रणी होने पर संस्था का नाम दिसंबर 2009 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए संस्था को सीएनबीसी का सम्मान भी मिला। एक छात्र का भोजन तैयार कर पहुंचाने तक पर पांच रुपये का खर्च आता है। तीन रुपये राज्य सरकार वहन करती है, जबकि दो रुपये बेंगलुरु स्थित इस्कॉन मंदिर में प्राप्त दान से खर्च किए जा रहे हैं। वर्ष में औसतन 235 दिन मिड-डे-मील दिया जाता है। स्वच्छ भारत मिशन में भी सहयोग
अक्षयपात्र फाउंडेशन जिन विद्यालयों में भोजन पहुंचा रहा है, उन विद्यालयों में स्वच्छता के लिए भी अभियान चला रहा है। हर वर्ष सबसे स्वच्छ विद्यालय, सबसे स्वच्छ रहने वाले विद्यार्थी और अध्यापक को सम्मानित किया जाता है। ताकि बालकों और शिक्षकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बनी रहे। शिक्षा में भी सहयोग
संस्था द्वारा ग्रामीण अंचलों के सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को युवा स्वयंसेवकों के जरिए प्रतिदिन ट्यूशन में भी अध्ययन करवाया जाता है। ताकि विद्यालय में पढ़ाई के साथ बच्चों में घर पर भी पढ़ने के लिए उत्साह पैदा हो सके।