चिता की चिता जली, समस्या वहीं रही
वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार शहर की आबादी लगभग दो लाख है जो बढ़कर लगभग साढे़ तीन लाख के आसपास पहुंच गई है। आबादी तो बढ़ रही है लेकिन कूड़ा निस्तारण के इंतजाम अब भी वर्षों पुराने ही हैं। वार्डो की संख्या जब 28 थी तो शहर से लगभग 40 टन कचरा प्रतिदिन निकलता था। वर्ष 2016 में परिसीमन हुआ तो वार्ड की संख्या बढ़कर 32 हो गई। अब प्रतिदिन लगभग 100 टन कचरा निकल रहा है लेकिन निस्तारण प्लांट की क्षमता 40 टन ही है। ऐसे में शहर में कचरे का संकट बढ़ता जा रहा है। अधूरे इंतजाम की वजह से गंदगी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सार्वजनिक सड़कों से लेकर कालोनियां तक सब जगह गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। पालिका के पास सफाई कर्मचारियों की कमी नहीं है। लगभग 400 कर्मचारी हैं लेकिन ज्यादातर अफसरों और सभासदों के घर की चाकरी में ही व्यस्त रहते हैं।
जागरण संवाददाता, मैनपुरी: वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार शहर की आबादी लगभग दो लाख है, जो बढ़कर लगभग साढे़ तीन लाख के आसपास पहुंच गई है। आबादी तो बढ़ रही है, लेकिन कूड़ा निस्तारण के इंतजाम अब भी वर्षों पुराने ही हैं। वार्डो की संख्या जब 28 थी तो शहर से लगभग 40 टन कचरा प्रतिदिन निकलता था। वर्ष 2016 में परिसीमन हुआ तो वार्ड की संख्या बढ़कर 32 हो गई। अब प्रतिदिन लगभग 100 टन कचरा निकल रहा है, लेकिन निस्तारण प्लांट की क्षमता 40 टन ही है। ऐसे में शहर में कचरे का संकट बढ़ता जा रहा है। अधूरे इंतजाम की वजह से गंदगी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सार्वजनिक सड़कों से लेकर कालोनियां तक सब जगह गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। पालिका के पास सफाई कर्मचारियों की कमी नहीं है। लगभग 400 कर्मचारी हैं, लेकिन ज्यादातर अफसरों और सभासदों के घर की चाकरी में ही व्यस्त रहते हैं। इंतजाम पर लापरवाही हावी
पालिका प्रशासन द्वारा मिली जानकारी के अनुसार 300 बडे़ और लगभग 200 छोटे कूड़ेदान हैं। इसके अलावा गीले और सूखे कूडे़ के लिए पूरे शहर में लगभग 200 स्टील की 20-20 लीटर वाली बाल्टियां लगवाई गई थीं। बाल्टियां देखरेख के अभाव में नष्ट हो चुकी हैं। वहीं बड़ी संख्या में कूडे़दान वाटर वर्क्स के पास बने पार्क में कबाड़ हो रहे हैं। इन्हें रखवाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं कराई गई। संसाधन की नहीं है कमी
पालिका के पास तीन ट्रक, दो लोडर, एक बड़ी और एक छोटी जेटिग मशीन, दो कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां, पांच ट्रैक्टर-ट्राली, चार जेसीबी, कूड़ा उठाने के लिए 28 छोटी डीजल वाली गाड़ियां, चार ई-रिक्शा, 30 हाथ वाले रिक्शे स्टील की चार-चार बाल्टियों के साथ उपलब्ध तो हैं, लेकिन इनमें से संचालन कुछ का ही हो रहा है। डीजल चालित गाड़ियों को कालोनियों में भेजा ही नहीं जाता। हाथ रिक्शा वाली बाल्टियों का भी आज तक कोई पता नहीं चला। किसी भी कालोनी में ये रिक्शे नहीं पहुंचे। अधिशासी अधिकारी लालचंद भारती का कहना है कि सभी वाहनों से कूड़ा निस्तारण का काम लिया जा रहा है। हम लगातार प्रयास कर रहे हैं। इनसे सीखें--- फोटो
लोगों को स्वच्छता की अहमियत समझाने में वैद्य संजीव मिश्र आगे रहते हैं। औषधालय में आने वाले सभी मरीजों को दवा देने के बाद स्वच्छता से संबंधित परामर्श देते हैं। पौधारोपण हो या फिर लोगों को जागरूक करने का काम, वे हमेशा ही सहयोग देते रहे हैं। उनका कहना है कि बीमारियों की सबसे बड़ी वजह गंदगी ही है। यदि हम सब अपनी थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी समझ लें तो बड़ी से बड़ी समस्या का निस्तारण हो सकता है। स्वच्छ शहर के लिए हमें अपनी आदतों में परिवर्तन लाने की जरूरत है। फोटो--
सावधान
बीमारियों की एक बड़ी वजह गंदगी होती है। हम सार्वजनिक स्थानों पर ही गंदगी या कचरा फेंकते हैं। सड़ते-सड़ते इसके हानिकारक तत्व जमीन के अंदर रिसते रहते हैं। बाद में पानी या अन्य किसी माध्यम से हानिकारक तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर हमें बीमार कर देते हैं। कई बार गंदगी की वजह से हुई बीमारियों का असर हड्डियों पर भी दिखता है। असहनीय दर्द, हड्डियों में जकड़न, सूजन या फिर अन्य प्रकार की परेशानी बनी रहती हैं। अक्सर, मरीज को दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। मेरी हर एक मरीज को यही सलाह रहती है कि अपने आसपास साफ-सफाई बनाए रखें।
-डा. पल्लवी, अस्थि रोग चिकित्सक। --फोटो सहित
अपील
शहर के प्रति हम सभी की जिम्मेदारी होती है। शिक्षित होने का सही मतलब तो तभी है जब हम गंदगी के निस्तारण के लिए स्वयं पहल करें। जिस दिन यह सोच जागृत हो गई, उसी दिन से परिवर्तन भी शुरू हो जाएगा। सिर्फ व्यवस्था पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए।
-डा. राममोहन, शिक्षाविद्। बहुत हद तक सिस्टम जवाबदेह होता है, लेकिन हमारी अपनी भी जवाबदेही निर्धारित है। आखिर ये कचरा कहां से आता है, हमें इस पर मंथन करना चाहिए। सड़कों पर कचरा फेंकने की बजाय उसे निर्धारित प्वाइंट या डस्ट बिन में ही डालने की आदत बनानी होगी।
-डा. राकेश गुप्ता, शिक्षाविद्। हम अपना घर-आंगन तो साफ कर लेते हैं, लेकिन कचरा सड़क पर डाल देते हैं। इस सोच को ही बदलने की जरूरत है। घर-आंगन से निकला कचरा डस्टबिन में डालना होगा। इसकी पहल हमें अपने घर से ही करनी होगी। इसे एक मुहिम के तौर पर लेना होगा।
-अंजली सिंह, जिला समन्वयक मातृ वंदना योजना। हमें महिलाओं को सबसे ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है। घर की सफाई के लिए सदैव तत्पर रहने वाली महिलाओं को समझना होगा कि कचरे को सार्वजनिक स्थानों पर न फेंकें। जागरूकता के साथ पालिका प्रशासन को अपनी जवाबदेही भी समझनी होगी।
-आराधना गुप्ता, समाजसेवी।